"सुप्रीम कोर्ट में लूनी-बांडी-जोजरी नदियों के प्रदूषण पर अहम सुनवाई: पर्यावरण और आजीविका की रक्षा की उम्मीद"
राजस्थान की लूनी-बांडी-जोजरी नदियों के प्रदूषण मामले पर सुप्रीम कोर्ट की महत्वपूर्ण सुनवाई आज नई दिल्ली/जोधपुर, 10 अक्टूबर 2025: भारत के सर्वोच्च न्यायालय में शुक्रवार को राजस्थान की प्रमुख नदियों—लूनी, बांडी और जोजरी—में फैल रहे गंभीर प्रदूषण को लेकर एक अहम सुनवाई होने वाली है। यह मामला न केवल पर्यावरण संरक्षण के लिए बल्कि स्थानीय समुदायों की आजीविका और जल संसाधनों की रक्षा के लिहाज से भी बेहद संवेदनशील है। सुप्रीम कोर्ट ने इस मुद्दे पर 16 सितंबर को स्वत: संज्ञान लेते हुए कार्रवाई शुरू की थी, और अब तीन पुरानी लंबित याचिकाओं को भी इसी जांच प्रक्रिया में शामिल कर लिया गया है।मामले का पृष्ठभूमि और उत्पत्तिलूनी नदी राजस्थान की सबसे लंबी नदी है, जो अरावली पर्वतमाला से निकलकर गुजरात के कच्छ क्षेत्र तक फैली हुई है। इसी तरह बांडी और जोजरी नदियां भी इस क्षेत्र की महत्वपूर्ण जल स्रोत हैं, जो कृषि, पशुपालन और पीने के पानी की आपूर्ति में सहायक हैं। हालांकि, पिछले कई वर्षों से इन नदियों में औद्योगिक कचरे, रासायनिक प्रदूषण और अपशिष्ट जल के अनियंत्रित निर्वहन के कारण जल की गुणवत्ता तेजी से बिगड़ रही है। इन नदियों का जल अब पीने योग्य नहीं रहा है, और यह मछली पालन तथा सिंचाई को भी बुरी तरह प्रभावित कर रहा है।इस समस्या की जड़ें गहरी हैं। जोधपुर, बाड़मेर और जैसलमेर जैसे जिलों में स्थित टेक्सटाइल, केमिकल और चमड़ा उद्योगों से निकलने वाला विषैला अपशिष्ट सीधे नदियों में गिराया जा रहा है। इसके अलावा, शहरीकरण और अपर्याप्त सीवेज ट्रीटमेंट प्लांट्स ने स्थिति को और जटिल बना दिया है। पर्यावरण कार्यकर्ताओं और स्थानीय निवासियों का कहना है कि यह प्रदूषण न केवल पारिस्थितिकी तंत्र को नुकसान पहुंचा रहा है, बल्कि कैंसर जैसी बीमारियों का प्रसार भी कर रहा है। सुप्रीम कोर्ट का हस्तक्षेप: स्वत: संज्ञान से नई उम्मीदेंसुप्रीम कोर्ट ने 16 सितंबर 2025 को इस मुद्दे पर अपनी ओर से ही संज्ञान लिया था। यह कदम मीडिया रिपोर्ट्स, एनजीओ की शिकायतों और सरकारी रिपोर्टों के आधार पर उठाया गया, जो नदियों की दयनीय स्थिति को उजागर कर रही थीं। कोर्ट ने तत्काल प्रभाव से केंद्र और राज्य सरकारों को नोटिस जारी किए, जिसमें प्रदूषण रोकने के लिए तुरंत कदम उठाने का निर्देश दिया गया। मुख्य न्यायाधीश की अगुवाई वाली बेंच ने स्पष्ट किया कि यह पर्यावरणीय आपदा का रूप ले चुका है, और इसमें कोई ढिलाई बर्दाश्त नहीं की जाएगी।इसके साथ ही, कोर्ट ने तीन पुरानी याचिकाओं को इस मामले में जोड़ दिया है। ये याचिकाएं 2018 से लंबित थीं, जिनमें स्थानीय पर्यावरण संगठनों ने नदियों के संरक्षण के लिए विशेषज्ञ समिति गठन और उद्योगों पर सख्त प्रतिबंध की मांग की थी। अब ये सभी याचिकाएं एक साथ सुनवाई के दायरे में आ गई हैं, जिससे मामले को व्यापक जांच का मौका मिलेगा। सुनवाई में क्या होगा फोकस?आज की सुनवाई में सुप्रीम कोर्ट संभावित रूप से निम्नलिखित बिंदुओं पर चर्चा करेगा: प्रदूषण स्तर का मूल्यांकन: राष्ट्रीय हरित अधिकरण (एनजीटी) और केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (सीपीसीबी) की रिपोर्टों के आधार पर नदियों के जल की जांच। उद्योगों की जवाबदेही: दोषी उद्योगों पर जुर्माना, बंदी या सफाई का दायित्व तय करना। सरकारी योजनाएं: राज्य सरकार की 'नमामि गंगे' जैसी परियोजनाओं का विस्तार इन नदियों के लिए, साथ ही नए सीवेज ट्रीटमेंट प्लांट्स की स्थापना। स्थानीय प्रभाव: प्रभावित किसानों और मछुआरों को मुआवजा तथा पुनर्वास की व्यवस्था। पर्यावरण मंत्री ने हाल ही में एक बयान में कहा, "नदियों का संरक्षण हमारी प्राथमिकता है। केंद्र सरकार राजस्थान के साथ मिलकर इस दिशा में ठोस कदम उठाएगी।" वहीं, एक प्रमुख पर्यावरणविद् ने टिप्पणी की, "यह कोर्ट का हस्तक्षेप ही इन नदियों को मृत्यु से बचा सकता है। "संभावित प्रभाव और भविष्य की दिशाइस सुनवाई के परिणामस्वरूप न केवल तत्काल राहत मिल सकती है, बल्कि यह पूरे देश के लिए एक मिसाल कायम करेगा। यदि सुप्रीम कोर्ट सख्त निर्देश जारी करता है, तो उद्योगों को अपनी प्रक्रियाओं में सुधार करना पड़ेगा, जो लंबे समय में जल संरक्षण को मजबूत बनाएगा। हालांकि, चुनौतियां बरकरार हैं—जैसे बजट की कमी और कार्यान्वयन में देरी।स्थानीय समुदायों में इस सुनवाई को लेकर उत्साह है। जोधपुर के एक किसान ने कहा, "हमारी नदियां मर रही हैं, लेकिन कोर्ट की यह कार्रवाई हमें नई जिंदगी देगी।"