गांव में सरपंच चुनाव में उलटफेर, EVM गिनती ने खोली सच्चाई

सरपंच चुनाव में गलत गिनती से कुलदीप सिंह को विजेता घोषित किया गया, लेकिन सुप्रीम कोर्ट के आदेश पर दिल्ली में दोबारा गिनती के बाद मोहित कुमार को असली विजेता घोषित कर 15 अगस्त 2025 को सरपंच बनाया गया। यह मामला EVM गड़बड़ियों पर राष्ट्रीय बहस को और हवा देता है।

Aug 16, 2025 - 14:39
गांव में सरपंच चुनाव में उलटफेर, EVM गिनती ने खोली सच्चाई

हरियाणा के पानीपत जिले के छोटे से गांव बुआना लाखू में एक साधारण सरपंच चुनाव की कहानी ने पूरे देश का ध्यान खींच लिया है। नवंबर 2022 में शुरू हुआ यह मामला सुप्रीम कोर्ट के हस्तक्षेप के बाद एक ऐतिहासिक मोड़ पर पहुंचा, जहां दिल्ली में कोर्ट परिसर में ही वोटों की दोबारा गिनती हुई—यह भारत के न्यायिक इतिहास में पहली बार हुआ। नतीजा? गलत तरीके से विजेता घोषित हुए उम्मीदवार को हटाकर असली हकदार मोहित कुमार को 15 अगस्त 2025 को, स्वतंत्रता दिवस के दिन, सरपंच की शपथ दिलाई गई। इस जीत के लिए उन्हें करीब 33 महीने इंतजार करना पड़ा।

यह सिर्फ एक व्यक्ति की न्याय की लड़ाई नहीं है; यह कहानी लोकतंत्र की ताकत और उसमें मौजूद कमजोरियों को उजागर करती है। जैसे ही गांव में सच्चाई की जीत का जश्न मना, यह मामला विपक्षी नेता राहुल गांधी जैसे लोगों की उस शिकायत को बल देता है, जो लंबे समय से इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग मशीनों (EVM) में गड़बड़ी की बात उठा रहे हैं। आइए, इस पूरी कहानी को विस्तार से समझते हैं।

चुनावी दिन की गड़बड़: एक बूथ में वोटों की अदला-बदली

यह ड्रामा 2 नवंबर 2022 को शुरू हुआ, जब हरियाणा में पंचायत चुनाव हुए। बुआना लाखू, जो ओलंपियन जैवलिन थ्रोअर नवदीप सिंह जैसे खिलाड़ियों का गांव है, में सरपंच पद के लिए सात उम्मीदवार मैदान में थे। छह बूथों में कुल 3,767 वोट डाले गए।

मुख्य मुकाबला मोहित कुमार और कुलदीप सिंह के बीच था। शुरुआती नतीजों में कुलदीप को 1,051 वोट और मोहित को 1,000 वोट मिले। गांव में कुलदीप की जीत का जश्न शुरू हो गया, और उन्हें विजेता का प्रमाण पत्र दे दिया गया। लेकिन कुछ गड़बड़ थी। मोहित को शक हुआ कि बूथ नंबर 69 में उनके 254 वोट गलती से कुलदीप को दे दिए गए।

तुरंत कार्रवाई करते हुए, रिटर्निंग ऑफिसर ने उसी दिन स्वत: संज्ञान लेते हुए दोबारा गिनती का आदेश दिया। नतीजा चौंकाने वाला था: मोहित को 1,051 और कुलदीप को 1,000 वोट मिले—51 वोटों के अंतर से मोहित विजेता बने। मोहित को थोड़े समय के लिए सरपंच घोषित किया गया, लेकिन कुलदीप हार मानने को तैयार नहीं थे। अपने पहले मिले प्रमाण पत्र के दम पर उन्होंने पंजाब और हरियाणा हाई कोर्ट में चुनौती दी, यह दावा करते हुए कि एक बार घोषित नतीजे को बिना औपचारिक याचिका के बदला नहीं जा सकता।

कानूनी भूलभुलैया: हाई कोर्ट के स्टे से ट्रिब्यूनल की लड़ाई तक

हाई कोर्ट ने कुलदीप का पक्ष लिया और स्वत: संज्ञान वाली गिनती को अवैध ठहराकर उन्हें सरपंच बरकरार रखा। मोहित ने हार नहीं मानी और पानीपत के चुनाव ट्रिब्यूनल में याचिका दायर की। कुलदीप ने प्रक्रियात्मक देरी जैसे तकनीकी आपत्तियां उठाईं, लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने शुरुआत में ही इन बाधाओं को खारिज कर ट्रिब्यूनल को चार महीने में मामले को सुलझाने का निर्देश दिया।

7 मई 2025 तक ट्रिब्यूनल ने बूथ नंबर 69 की दोबारा गिनती का आदेश दिया। नई गिनती ने वोटों की अदला-बदली की पुष्टि की—मोहित के वोट कुलदीप को दिए गए थे। फिर भी, कुलदीप ने हाई कोर्ट में अपील की, जिसने जुलाई 2025 में ट्रिब्यूनल के आदेश को रद्द कर दिया और दोबारा गिनती से इनकार करते हुए कुलदीप को ही विजेता माना। मोहित के लिए यह और देरी का सबब बना, और गांव का विकास ठप रहा—कोई नया प्रोजेक्ट नहीं, समुदाय के मुद्दे अनसुलझे रहे, और पंचायत लटक गई।

कुलदीप ढाई साल से ज्यादा समय तक सरपंच रहे, लेकिन गांव को नुकसान हुआ। मोहित ने बाद में स्थानीय लोगों से बातचीत में कहा, "पंचायत का काम रुका, लोगों की समस्याएं बढ़ती गईं।" यह एक निराशाजनक दौर था, जहां साफ गलती के बावजूद न्याय दूर लग रहा था।

सुप्रीम कोर्ट का अभूतपूर्व कदम: कोर्ट में गिनती

निराश लेकिन दृढ़ निश्चयी मोहित ने जुलाई 2025 में सुप्रीम कोर्ट का रुख किया। 31 जुलाई को जस्टिस सूर्य कांत, जस्टिस दीपांकर दत्ता और जस्टिस एन. कोटिस्वर सिंह की बेंच ने अभूतपूर्व कदम उठाते हुए सभी EVM मशीनों को कोर्ट में मंगवाया। आंशिक जांच से संतुष्ट न होते हुए कोर्ट ने सभी बूथों के वोटों की पूरी गिनती का आदेश दिया—वह भी सुप्रीम कोर्ट परिसर में।

9 अगस्त 2025 को कोर्ट के रजिस्ट्रार ने वीडियो रिकॉर्डिंग के साथ सुरक्षित माहौल में गिनती की, जिसमें दोनों पक्षों के प्रतिनिधि और तीन पर्यवेक्षक मौजूद थे। माहौल किसी कोर्टरूम थ्रिलर जैसा था। सीलबंद रिपोर्ट में नतीजा साफ था: मोहित को 1,051 और कुलदीप को 1,000 वोट मिले। बूथ 69 में हुई गलती ने ही नतीजा पलट दिया था।

11 अगस्त के अपने आदेश में सुप्रीम कोर्ट ने शुरुआती गिनती को रिटर्निंग ऑफिसर की "भयानक गलती" करार दिया, जिसमें कोई दुर्भावना नहीं थी। हाई कोर्ट के फैसले को रद्द करते हुए बेंच ने मोहित को सही विजेता घोषित किया और पानीपत के डिप्टी कमिश्नर को दो दिन में नया नोटिफिकेशन जारी करने का आदेश दिया। मोहित को तुरंत पदभार संभालना था, हालांकि ट्रिब्यूनल के अन्य पहलुओं पर अंतिम फैसला बाकी था।

जस्टिस कांत ने सुनवाई के दौरान टिप्पणी की कि ऐसी गलतियां जनता का भरोसा तोड़ती हैं और चुनावों में पारदर्शिता की जरूरत पर जोर दिया। कोर्ट ने स्पष्ट किया कि रजिस्ट्रार की रिपोर्ट गिनती पर अंतिम थी।

आखिरकार जीत: शपथ, जश्न और गांव की राहत

आदेश के मुताबिक, मोहित ने 15 अगस्त 2025 को—स्वतंत्रता दिवस पर—शपथ ली। बुआना लाखू में जश्न का माहौल था। लगभग तीन साल इंतजार करने वाले ग्रामीणों ने आतिशबाजी की और मिठाइयां बांटीं। मोहित ने गांव की खेल परंपरा को सम्मान देते हुए एक स्पोर्ट्स स्टेडियम और लाइब्रेरी शुरू करने का वादा किया।

मोहित के लिए यह जीत कड़वी-मीठी थी। उन्होंने पत्रकारों से कहा, "लगभग तीन साल लगे यह साबित करने में कि सही क्या था। लेकिन सुप्रीम कोर्ट की वजह से न्याय मिला।" कुलदीप ने फैसले को स्वीकार कर लिया है, लेकिन सवाल बना रहता है: इतनी साधारण गलती इतने लंबे समय तक कैसे टिकी रही?

राष्ट्रीय बहस में गूंज: EVM पर सवाल

यह मामला ऐसे समय में सामने आया है, जब विपक्षी नेता, खासकर कांग्रेस के राहुल गांधी, EVM में गड़बड़ी की बात जोर-शोर से उठा रहे हैं। गांधी ने बार-बार वोट चोरी और मशीनों में छेड़छाड़ का आरोप लगाया है, और कागजी बैलट की वापसी की मांग की है। बुआना लाखू की घटना, जहां एक बूथ-स्तर की गलती से गलत उम्मीदवार ढाई साल तक पद पर रहा, इन चिंताओं को बल देती है।

हालांकि सुप्रीम कोर्ट ने स्पष्ट किया कि यह गिनती में मानवीय गलती थी, न कि EVM हैकिंग, लेकिन यह व्यवस्था की कमजोरियों को उजागर करता है। जैसे ही गांधी और अन्य नेता "वोट चोरी" का शोर मचाते हैं, यह कहानी हमें याद दिलाती है कि लोकतंत्र की ताकत जनता के वोट में है—बशर्ते उसे सही गिना जाए।

Yashaswani Journalist at The Khatak .