पंचायती राज और निकाय चुनावों में देरी: सरकार पर सवाल, आयोग बेबस
राजस्थान में पंचायती राज और नगरीय निकाय चुनावों पर परिसीमन और पुनर्गठन के कारण अनिश्चितता बनी हुई है, जिसे लेकर हाईकोर्ट ने सरकार और निर्वाचन आयोग से जवाब मांगा है। सरकार पर देरी और मनमानी के आरोप लग रहे हैं।

राजस्थान में पंचायती राज संस्थाओं और नगरीय निकायों के चुनावों को लेकर अनिश्चितता का माहौल बना हुआ है। प्रदेश की 6,000 से अधिक ग्राम पंचायतों और 50 से अधिक नगरीय निकायों का कार्यकाल पूरा होने के महीनों बाद भी चुनाव की तारीखें घोषित नहीं हो सकी हैं। राज्य निर्वाचन आयोग ने स्पष्ट किया है कि परिसीमन और पुनर्गठन का कार्य अभी राज्य सरकार के स्तर पर प्रक्रियाधीन है, जिसके कारण चुनाव तय समय पर नहीं हो पा रहे हैं। इस मामले ने अब राजस्थान हाईकोर्ट का भी ध्यान खींचा है, जहां सरकार और आयोग से बार-बार जवाब तलब किया जा चुका है।
कार्यकाल समाप्त, प्रशासकों के भरोसे व्यवस्था
प्रदेश की अधिकांश ग्राम पंचायतों का कार्यकाल जनवरी 2025 में समाप्त हो चुका है, जबकि कई नगरीय निकायों का कार्यकाल भी पिछले साल नवंबर में पूरा हो गया था। चुनाव न होने की स्थिति में सरकार ने सरपंचों और अन्य पदों पर प्रशासकों की नियुक्ति कर दी है। यह व्यवस्था स्थानीय स्तर पर विकास कार्यों और प्रशासनिक प्रक्रियाओं को प्रभावित कर रही है। कई स्थानों पर छोटे-मोटे कामों के लिए फाइलें जिला कलेक्टर और अपर जिला कलेक्टर कार्यालयों तक पहुंच रही हैं, जिससे स्वीकृतियों में देरी हो रही है।
हाईकोर्ट का सख्त रुख
चुनाव में देरी का मामला हाईकोर्ट तक पहुंच चुका है। जस्टिस इंद्रजीत सिंह की खंडपीठ ने सरकार को 4 फरवरी 2025 के आदेश की पालना में चुनाव का शेड्यूल प्रस्तुत करने का निर्देश दिया था। हालांकि, सरकार और निर्वाचन आयोग ने अब तक कोई स्पष्ट तारीख नहीं दी है। याचिकाकर्ता के वकील प्रेमचंद देवंदा ने बताया कि हाईकोर्ट ने तीन बार सरकार और आयोग से जवाब मांगा, लेकिन हर बार अस्पष्ट जवाब ही मिला। आयोग का कहना है कि उसने सरकार को कई बार पत्र लिखकर परिसीमन और आरक्षण से जुड़ी जानकारी मांगी, लेकिन सरकार की ओर से कोई ठोस जवाब नहीं मिला। कोर्ट ने अगली सुनवाई 7 अप्रैल 2025 को निर्धारित की है और चेतावनी दी है कि यदि स्पष्ट शेड्यूल पेश नहीं किया गया तो सख्त कदम उठाए जा सकते हैं।
आरटीआई से खुलासा, सरकार पर सवाल
कांग्रेस प्रवक्ता और आरटीआई कार्यकर्ता संदीप कलवानिया ने राज्य निर्वाचन आयोग से सूचना के अधिकार के तहत चुनाव की तारीखों की जानकारी मांगी थी। आयोग ने जवाब में कहा कि परिसीमन और पुनर्गठन का कार्य पूरा होने तक चुनाव की तारीखों की घोषणा संभव नहीं है। कलवानिया ने सरकार पर जानबूझकर देरी करने का आरोप लगाया। उन्होंने कहा कि संविधान के अनुच्छेद 243(E) और 243(U) के तहत पंचायती राज संस्थाओं और नगरीय निकायों का कार्यकाल पांच वर्ष का होता है, और इसके बाद चुनाव अनिवार्य हैं। उन्होंने सरकार पर नियमों की अनदेखी और राजनीतिक लाभ के लिए पुनर्गठन में मनमानी करने का भी आरोप लगाया।
पुनर्गठन और परिसीमन में विवाद
राज्य सरकार ने पंचायती राज संस्थाओं और नगरीय निकायों के पुनर्गठन और परिसीमन को चुनाव टालने का आधार बताया है। 28 दिसंबर 2024 को कैबिनेट ने पंचायती राज संस्थाओं के पुनर्गठन का फैसला लिया था, जिसके तहत ग्राम पंचायतों, पंचायत समितियों और जिला परिषदों की संख्या बढ़ाने की योजना है। नए जिलों जैसे बालोतरा, ब्यावर, डीग, डीडवाना-कुचामन, कोटपूतली-बहरोड़, खैरथल-तिजारा, फलोदी और सलूंबर में पहली बार जिला परिषदों का गठन होगा।
हालांकि, इस प्रक्रिया में कई विवाद भी सामने आए हैं। कलवानिया ने आरोप लगाया कि कुछ क्षेत्रों में नियमों के विपरीत मनमाने ढंग से नक्शे बदले जा रहे हैं, जिससे स्थानीय स्तर पर विरोध हो रहा है। ग्रामीण विकास एवं पंचायती राज विभाग ने जिला कलेक्टरों को पुनर्गठन के प्रस्ताव तैयार करने की समय सीमा को दो बार बढ़ाया है, जो अब 30 मार्च 2025 तक है।
‘वन स्टेट, वन इलेक्शन’ की तैयारी
सरकार का कहना है कि वह ‘वन स्टेट, वन इलेक्शन’ के तहत पंचायती राज और नगरीय निकायों के चुनाव एक साथ कराने की योजना पर काम कर रही है। इसके लिए एक उच्चस्तरीय समिति का गठन प्रस्तावित है, जो एक साथ चुनाव से होने वाली बचत और स्थानीय निकायों को सशक्त करने के तरीकों का अध्ययन करेगी। स्वायत्त शासन मंत्री झाबर सिंह खर्रा ने कहा कि परिसीमन और पुनर्गठन का कार्य जुलाई 2025 तक पूरा हो जाएगा, जिसके बाद अगस्त में मतदाता सूची तैयार की जाएगी। इसके आधार पर अक्टूबर-नवंबर 2025 तक चुनाव कराए जा सकते हैं।
विपक्ष का सरकार पर हमला
कांग्रेस और माकपा सहित विपक्षी दलों ने चुनाव में देरी को लेकर सरकार की कड़ी आलोचना की है। पूर्व मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने एक पोस्ट में कहा कि सरकार नियम-कानून तोड़कर मनमाने ढंग से पुनर्गठन कर रही है। उन्होंने आरोप लगाया कि जिला कलेक्टर जनता की आपत्तियों को नजरअंदाज कर रहे हैं। विपक्ष का कहना है कि देरी से न केवल लोकतांत्रिक प्रक्रिया प्रभावित हो रही है, बल्कि ग्रामीण और शहरी क्षेत्रों में विकास कार्य भी ठप पड़ गए हैं।
उपचुनाव की घोषणा, लेकिन आम चुनाव पर सस्पेंस
हालांकि, राज्य निर्वाचन आयोग ने 8 जून 2025 को पंचायती राज और नगरीय निकायों के रिक्त पदों पर उपचुनाव कराने की घोषणा की थी। इनमें 1 जिला प्रमुख, 2 प्रधान, 17 सरपंच, 169 वार्ड पंच और नगरीय निकायों के 12 वार्डों सहित अन्य पद शामिल थे। लेकिन आम चुनावों की तारीखों पर अभी भी असमंजस बरकरार है।