कोटा में ऑनलाइन गेमिंग की लत ने उजाड़ा खुशहाल परिवार, 5 लाख के कर्ज में डूबे दंपती ने पत्नी के साथ की आत्महत्या
कोटा के कैथून इलाके में दीपक राठौर और उनकी पत्नी राजेश ने ऑनलाइन गेमिंग में 4-5 लाख रुपये के कर्ज में डूबने के बाद आत्महत्या कर ली। रविवार को बाजार से रस्सी खरीदकर लाए दंपती ने सोमवार सुबह पंखे से लटककर अपनी जान दे दी। उनकी 5 साल की बेटी ने कमरे का दरवाजा खोला, जहां यह दुखद नजारा सामने आया। दीपक ने आत्महत्या से पहले साली को फोन कर कर्ज और मरने की बात कही थी। यह घटना ऑनलाइन गेमिंग की लत के खतरों को उजागर करती है।

कोटा के कैथून इलाके में एक ऐसी त्रासदी सामने आई, जो ऑनलाइन गेमिंग की चकाचौंध और उसकी स्याह हकीकत को उजागर करती है। दीपक राठौर और उनकी पत्नी राजेश ने, जो कभी एक साधारण और खुशहाल जिंदगी जी रहे थे, ऑनलाइन गेमिंग की लत में फंसकर न केवल अपनी जिंदगी गंवा दी, बल्कि अपनी 5 साल की मासूम बेटी को अनाथ छोड़ गए। यह कहानी सिर्फ एक परिवार की नहीं, बल्कि उस खतरे की है, जो डिजिटल दुनिया की चमक में छिपा है।
रविवार की रात, खेड़ा रसूलपुर में सब कुछ सामान्य सा था। दीपक और राजेश ने अपनी छोटी सी दुनिया में अपनी बेटी के साथ खाना खाया, हंसी-मजाक किया। राजेश ने रात का खाना बनाया, और परिवार ने एक साथ भोजन किया। लेकिन इस सामान्य रात के पीछे एक तूफान पनप रहा था। दीपक, जो ऑनलाइन गेमिंग की दुनिया में फंस चुके थे, 4 से 5 लाख रुपये के कर्ज के बोझ तले दबे हुए थे। उस रात, दंपती बाजार से एक रस्सी लेकर आए, जिसे उन्होंने अपने अंतिम कदम के लिए चुना।
सोमवार सुबह, जब सूरज उगा, तो दीपक के बुजुर्ग पिता सत्यनारायण को चिंता हुई। बेटे और बहू का कमरा बंद था। बार-बार आवाज देने पर भी कोई जवाब नहीं मिला। आखिरकार, उनकी 5 साल की पोती ने मासूमियत से दरवाजा खोला। लेकिन जो नजारा सामने आया, उसने पूरे परिवार को हिलाकर रख दिया। दीपक और राजेश पंखे से लटके हुए थे। उस छोटी बच्ची की आंखों ने अपने माता-पिता का आखिरी रूप देखा, जिसे वह शायद कभी भूल न पाए।
कर्ज की जंजीर और आखिरी कॉल
दीपक ने रविवार शाम को अपनी साली को फोन किया था। उनकी आवाज में हताशा थी। उन्होंने बताया कि ऑनलाइन गेमिंग में वह लाखों रुपये हार चुके हैं। "मेरे पास अब मरने के सिवा कोई रास्ता नहीं बचा," यह उनके आखिरी शब्द थे। साली ने उन्हें समझाने की कोशिश की, वादा किया कि पैसे की व्यवस्था हो जाएगी, लेकिन दीपक का मनोबल टूट चुका था। शायद वह उस अंधेरी सुरंग से बाहर निकलने का रास्ता नहीं देख पाए, और राजेश ने भी अपने पति के इस दर्द में साथ देने का फैसला किया।
एक साधारण परिवार की कहानी
दीपक और राजेश की शादी को 6 साल हुए थे। सत्यनारायण के इकलौते बेटे दीपक पहले आरसीसी का काम करते थे, लेकिन ससुर प्रेम शंकर की मदद से उन्हें डीसीएम फैक्ट्री में नौकरी मिली थी। परिवार में कोई कलह नहीं थी। उनकी 5 साल की बेटी उनके जीवन की रोशनी थी। लेकिन ऑनलाइन गेमिंग की लत ने दीपक को इस कदर जकड़ा कि वह कर्ज के दलदल में फंसते चले गए। यह लत न केवल उनकी जिंदगी, बल्कि उनके पूरे परिवार को ले डूबी।
ऑनलाइन गेमिंग: सपनों का जाल, हकीकत का जहर
यह कोई पहली घटना नहीं है। ऑनलाइन गेमिंग और सट्टेबाजी की लत देश भर में कई जिंदगियों को निगल रही है। बिहार में एक व्यक्ति ने ड्रीम 11 और ऑनलाइन कैसीनो में 2 करोड़ रुपये हारने के बाद आत्महत्या कर ली। हल्द्वानी में एक 12वीं के छात्र ने कर्ज के दबाव में जहर खा लिया। इंदौर में एक आईआईटी छात्र ने ऑनलाइन सट्टेबाजी में हार के बाद फांसी लगा ली। ये घटनाएं बताती हैं कि ऑनलाइन गेमिंग की चमक कितनी खतरनाक हो सकती है।
क्या कहती है पुलिस और समाज?
कैथून पुलिस इस मामले की गहराई से जांच कर रही है। थानाधिकारी सुरेश कुमार के अनुसार, यह पता लगाया जा रहा है कि दीपक किन गेमिंग प्लेटफॉर्म्स से जुड़े थे और कर्ज का स्रोत क्या था। समाज में ऑनलाइन गेमिंग की लत को लेकर जागरूकता की कमी साफ दिखती है। विशेषज्ञों का मानना है कि सरकार को ऐसे प्लेटफॉर्म्स पर सख्त नियम लागू करने चाहिए और युवाओं को इस लत से बचाने के लिए काउंसलिंग और जागरूकता कार्यक्रम चलाने चाहिए। साइबर क्राइम से संबंधित शिकायतों के लिए राष्ट्रीय साइबर क्राइम पोर्टल (https://cybercrime.gov.in) और हेल्पलाइन 1930 उपलब्ध है।
एक मासूम की अनसुनी पुकार
इस त्रासदी का सबसे दर्दनाक पहलू है दीपक और राजेश की 5 साल की बेटी, जो अब अपने माता-पिता के बिना इस दुनिया में अकेली है। उस मासूम ने न केवल अपने माता-पिता को खोया, बल्कि उस दरवाजे को भी खोला, जिसके पीछे उसका पूरा संसार उजड़ चुका था। यह घटना हमें सोचने पर मजबूर करती है कि क्या एक खेल की चमक इतनी कीमती हो सकती है कि उसके लिए जिंदगियां दांव पर लगा दी जाएं?
आह्वान: ऑनलाइन गेमिंग की लत से बचें। अगर आप या आपका कोई करीबी इस जाल में फंस रहा है, तो तुरंत मनोवैज्ञानिक मदद लें। अपने परिवार को समय दें, क्योंकि असली खुशी डिजिटल स्क्रीन में नहीं, बल्कि अपनों के साथ बिताए पलों में है।