जोधपुर की तापी बावड़ी: खंडहर में तब्दील इतिहास, 'वंदे गंगा जल संरक्षण अभियान' के तहत पुनर्जनन की आस
जोधपुर की ऐतिहासिक तापी बावड़ी, जो कभी गंगा के समान पवित्र जल का स्रोत थी, आज कचरे और उपेक्षा के कारण खंडहर बनती जा रही है। 'वंदे गंगा जल संरक्षण जन अभियान' के तहत जल संरक्षण की योजना के बावजूद, इस बावड़ी की मरम्मत और सफाई तीन साल से रुकी हुई है। स्थानीय लोग सरकार और ठेकेदारों के बीच समन्वय की कमी से परेशान हैं। बावड़ी का पुनर्जनन न केवल जल संरक्षण बल्कि सांस्कृतिक धरोहर को बचाने के लिए जरूरी है।

जोधपुर, राजस्थान का ऐतिहासिक शहर, अपनी समृद्ध सांस्कृतिक विरासत और प्राचीन जल संरचनाओं के लिए जाना जाता है। इन्हीं में से एक है 403 साल पुरानी तापी बावड़ी, जो कभी इस क्षेत्र की शान थी। यह बावड़ी, जो 1618 में जोधपुर रियासत के दीवान वीर गिरधरजी व्यास के छोटे भाई नाथोजी व्यास ने अपने पिता तापोजी की स्मृति में बनवाई थी, आज खंडहर में तब्दील होती नजर आ रही है। कभी इस बावड़ी का पानी इतना स्वच्छ और पवित्र माना जाता था कि लोग इसे गंगा के जल के समान मानते थे। माना जाता है कि इसका जल स्रोत आज भी रहस्यमय है, क्योंकि कोई नहीं जानता कि इसका पानी कहाँ से आता है। लेकिन आज यह ऐतिहासिक बावड़ी कचरे और उपेक्षा का शिकार हो चुकी है।
तापी बावड़ी का गौरवशाली इतिहास
तापी बावड़ी कभी जोधपुर के लोगों के लिए जल का प्रमुख स्रोत थी। यहाँ बच्चे नहाते थे, स्थानीय लोग रोज़ाना पानी लेने आते थे, और दूर-दूर से पर्यटक इसकी भव्य संरचना और इसके रहस्यमय जल स्रोत को देखने आते थे। लेकिन समय के साथ इस बावड़ी में कचरा जमा होने लगा, पानी का स्तर धीरे-धीरे कम होता गया, और इसकी दीवारें जर्जर हो गईं। स्थानीय लोगों का कहना है कि इस बावड़ी की उपेक्षा ने न केवल इसके ऐतिहासिक महत्व को कम किया है, बल्कि जल संरक्षण की संभावनाओं को भी प्रभावित किया है।
वंदे गंगा जल संरक्षण अभियान और तापी बावड़ी
हाल ही में राजस्थान सरकार ने 'वंदे गंगा जल संरक्षण जन अभियान' की शुरुआत की है, जो 5 जून से 20 जून 2025 तक विश्व पर्यावरण दिवस और गंगा दशहरा के अवसर पर चलाया जा रहा है। इस अभियान का उद्देश्य राज्य के सभी 41 जिलों में जल संरक्षण को बढ़ावा देना, पारंपरिक जल स्रोतों जैसे कुओं, तालाबों, और बावड़ियों की मरम्मत और सफाई करना है, ताकि मानसून के दौरान जल संग्रहण को बढ़ाया जा सके। इस अभियान के तहत विभिन्न गतिविधिय ाँ जैसे श्रमदान, जल स्रोतों की सफाई, और जन जागरूकता अभियान चलाए जा रहे हैं।
लेकिन तापी बावड़ी के संदर्भ में यह अभियान अभी तक प्रभावी नहीं हो सका है। स्थानीय लोगों ने कई बार सरकार और प्रशासन से इस बावड़ी की मरम्मत और सफाई की माँग की, लेकिन ठोस कार्रवाई का अभाव रहा। तीन साल पहले, 2022 में, केंद्रीय जल शक्ति मंत्री गजेंद्र सिंह शेखावत ने तापी बावड़ी के पुनर्निर्माण की घोषणा की थी, और कुछ महीनों तक काम भी शुरू हुआ था। लेकिन यह कार्य जल्द ही ठप हो गया। स्थानीय लोगों का कहना है कि ठेकेदार और सरकार एक-दूसरे पर काम न करने का आरोप लगाते रहे। ठेकेदारों का कहना था कि सरकार ने आदेश और फंड जारी नहीं किए, जबकि सरकार का कहना था कि ठेकेदार काम में लापरवाही बरत रहे हैं। इस आपसी खींचतान में तापी बावड़ी की हालत और बिगड़ती चली गई।
स्थानीय लोगों की शिकायत और जल संरक्षण का संकट
तापी बावड़ी की बदहाल स्थिति न केवल इसके ऐतिहासिक महत्व को नुकसान पहुँचा रही है, बल्कि यह जल संरक्षण के लिए भी एक बड़ा खतरा है। राजस्थान जैसे रेगिस्तानी राज्य में, जहाँ पानी की कमी एक गंभीर समस्या है, ऐसी बावड़ियाँ जल संग्रहण का महत्वपूर्ण साधन हो सकती हैं। लेकिन तापी बावड़ी में जमा कचरा और गाद, साथ ही इसकी जर्जर संरचना, इसे मानसून के जल को संग्रहित करने के लिए अनुपयोगी बना रही है। स्थानीय निवासियों का कहना है कि अगर इस बावड़ी की मरम्मत और सफाई समय पर नहीं की गई, तो यह पूरी तरह खंडहर बन जाएगी, और इसका पानी, जो कभी गंगा के समान पवित्र माना जाता था, हमेशा के लिए खत्म हो जाएगा।
'वंदे गंगा जल संरक्षण अभियान' से उम्मीदें
'वंदे गंगा जल संरक्षण जन अभियान' के तहत राजस्थान सरकार ने सभी जिलों में मंत्रियों को जिम्मेदारियाँ सौंपी हैं, ताकि जल संरक्षण के कार्यों को गति दी जा सके। जोधपुर में भी इस अभियान के तहत जल स्रोतों की सफाई, मरम्मत, और पुनर्जनन के लिए कई योजनाएँ प्रस्तावित हैं। लेकिन तापी बावड़ी जैसे विशिष्ट और ऐतिहासिक जल स्रोतों के लिए विशेष ध्यान देने की आवश्यकता है। स्थानीय लोग माँग कर रहे हैं कि सरकार इस बावड़ी के पुनर्जनन के लिए एक विशेष कार्ययोजना बनाए, जिसमें न केवल इसकी सफाई और मरम्मत शामिल हो, बल्कि इसके ऐतिहासिक और सांस्कृतिक महत्व को भी संरक्षित किया जाए।
तापी बावड़ी का पुनर्जनन न केवल जोधपुर के लिए, बल्कि पूरे राजस्थान के लिए एक मिसाल बन सकता है। यह बावड़ी न सिर्फ जल संरक्षण का एक प्रभावी साधन हो सकती है, बल्कि पर्यटन को बढ़ावा देने में भी महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकती है। सरकार को चाहिए कि वह ठेकेदारों और अधिकारियों के बीच समन्वय स्थापित करे, और इस बावड़ी के पुनर्निर्माण के लिए एक समयबद्ध योजना लागू करे। साथ ही, 'वंदे गंगा जल संरक्षण जन अभियान' के तहत जनसहभागिता को बढ़ावा देकर स्थानीय लोगों को इस कार्य में शामिल किया जाए, ताकि यह अभियान एक जन आंदोलन बन सके।
अगर तापी बावड़ी को समय रहते नहीं बचाया गया, तो यह न केवल जोधपुर की सांस्कृतिक धरोहर का नुकसान होगा, बल्कि जल संरक्षण के लिए एक सुनहरा अवसर भी खो जाएगा। यह समय है कि सरकार और समाज मिलकर इस ऐतिहासिक बावड़ी को फिर से जीवंत करें, ताकि यह न केवल जल संरक्षण का स्रोत बने, बल्कि आने वाली पीढ़ियों को भी अपनी गौरवशाली विरासत से जोड़े।