जैसलमेर बस अग्निकांड में एक परिवार की पांचवीं त्रासदी, मृतकों का सिलसिला 28 पर पहुंचा.

14 अक्टूबर को जैसलमेर-जोधपुर हाईवे पर नई AC बस में शॉर्ट सर्किट से भड़की आग ने 57 यात्रियों को मौत के जाल में फंसाया। पीर मोहम्मद की जयपुर SMS अस्पताल में इलाज के दौरान मौत; पत्नी-तीन बच्चे पहले ही जा चुके। जोधपुर MGH में 27 मौतें, दो घायल (विशाखा ICU, फिरोज बर्न वार्ड) जंग लड़ रहे। सरकार जांच, मुआवजा दे रही—पर सवाल: सड़क सुरक्षा कब मजबूत होगी?

Oct 28, 2025 - 13:43
जैसलमेर बस अग्निकांड में एक परिवार की पांचवीं त्रासदी, मृतकों का सिलसिला 28 पर पहुंचा.

जोधपुर/जयपुर, 28 अक्टूबर 2025: राजस्थान के जैसलमेर में 14 अक्टूबर को हुई बस अग्निकांड की भयावहता थमने का नाम नहीं ले रही। इस दिल दहला देने वाले हादसे में अब तक 28 लोगों की जान जा चुकी है, जो राज्य की सड़कों पर सुरक्षा के ढांचे पर सवाल खड़े कर रहा है। सोमवार को जयपुर के सवाई मानसिंह अस्पताल में इलाज के दौरान एक और घायल पीर मोहम्मद ने दम तोड़ दिया। उनके परिवार के लिए यह पांचवीं मार साबित हुई, क्योंकि हादसे में उनकी पत्नी इमामत बानो और तीन मासूम बच्चों की पहले ही मौत हो चुकी थी। यह घटना न केवल एक परिवार की कहानी है, बल्कि पूरे समाज को झकझोरने वाली त्रासदी का प्रतीक बन गई है।

हादसे की शुरुआत: नई बस बनी मौत का जाल

यह भीषण हादसा 14 अक्टूबर दोपहर करीब 3:30 बजे जैसलमेर-जोधपुर हाईवे पर थईयात गांव के पास वार म्यूजियम के आसपास हुआ। जैसलमेर से जोधपुर जा रही निजी एसी स्लीपर बस (नंबर RJ 09 PA 8040) में सवार 57 यात्री थे। बस की खरीद महज पांच दिन पहले ही हुई थी, लेकिन सुरक्षा मानकों की अनदेखी ने इसे मौत का ताबूत बना दिया। प्रारंभिक जांच में शॉर्ट सर्किट को आग का मुख्य कारण बताया गया, जो बस के पिछले हिस्से से शुरू होकर तेजी से पूरे वाहन में फैल गई। प्रत्यक्षदर्शियों के अनुसार, चालक ने धुआं देखते ही बस रोकी, लेकिन दरवाजा जाम होने और कंप्रेसर विस्फोट के कारण यात्री बाहर नहीं निकल पाए। कुछ ने खिड़कियों का शीशा तोड़कर भागने की कोशिश की, लेकिन आग की लपटों ने 20 से अधिक लोगों को जिंदा जला दिया।मौके पर पहुंची सेना, स्थानीय ग्रामीणों और पुलिस ने बचाव कार्य में जान जोखिम में डाल दी। मुख्यमंत्री भजनलाल शर्मा ने तुरंत घटनास्थल का दौरा किया और घायलों को ग्रीन कॉरिडोर के जरिए जोधपुर के अस्पतालों में पहुंचाने का इंतजाम किया। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भी इस त्रासदी पर शोक व्यक्त करते हुए मृतकों के परिजनों के लिए 2 लाख रुपये और घायलों के लिए 50 हजार रुपये की अनुग्रह राशि की घोषणा की। राज्य सरकार ने मुआवजे के अलावा एसआईटी जांच के आदेश दिए, जिसमें बस मालिक और चालक को गिरफ्तार भी कर लिया गया।

मृतकों की संख्या का सिलसिला: 20 से बढ़कर 28

हादसे के तुरंत बाद मृतकों की संख्या 20 बताई गई, जिसमें दो बच्चे और चार महिलाएं शामिल थीं। लेकिन जलने के कारण शवों की पहचान मुश्किल होने से डीएनए टेस्टिंग की प्रक्रिया शुरू हुई। अगले दिनों में इलाज के दौरान संख्या बढ़ती गई—22, फिर 27 और अब 28। जोधपुर के महात्मा गांधी अस्पताल (एमजीएच) में अब तक 27 मौतें दर्ज हो चुकी हैं। हादसे में सबसे ज्यादा प्रभावित परिवारों में से एक पीर मोहम्मद का था। वे गुजरात के रहने वाले थे और परिवार के साथ जैसलमेर घूमने आए थे। हादसे में बुरी तरह झुलसने के बाद उन्हें पहले एमजीएच में भर्ती किया गया, फिर परिजनों ने अहमदाबाद ले जाने का प्रयास किया, लेकिन हालत बिगड़ने पर जयपुर के एसएमएस अस्पताल रेफर कर दिया गया। वहां वेंटिलेटर पर लड़े मुकाबले के बावजूद सोमवार को उनकी सांसें थम गईं।पीर मोहम्मद के अलावा, जोधपुर के महेंद्र मेघवाल का पूरा परिवार भी इस हादसे का शिकार हुआ। महेंद्र, उनकी पत्नी, दो बेटियां और एक बेटा—सभी जिंदा जल गए। डीआरडीओ में तैनात महेंद्र जैसलमेर ड्यूटी से लौट रहे थे। इसी तरह, अन्य मृतकों में राजस्थान के विभिन्न जिलों के निवासी शामिल हैं, जिनकी पहचान डीएनए मिलान से हो रही है। जिला प्रशासन ने हेल्पलाइन नंबर (9414801400, 8003101400) जारी किए हैं, ताकि परिजन संपर्क कर सकें।

बचे हुए योद्धा: दो घायलों की जंग जारी

अस्पतालों में इलाजरत बचे यात्रियों की हालत पर नजर रखी जा रही है। एमजीएच में अभी दो घायल—विशाखा और फिरोज—भर्ती हैं। विशाखा का इलाज आईसीयू में चल रहा है, जबकि फिरोज बर्न वार्ड में हैं। अस्पताल अधीक्षक डॉ. फतेह सिंह भाटी ने बताया कि दोनों की हालत फिलहाल स्थिर है, लेकिन पूर्ण स्वस्थ होने में अभी समय लगेगा। जवाहर अस्पताल, जैसलमेर में भी कुछ हल्के घायलों का उपचार जारी है। डॉक्टरों की टीम दिन-रात ड्यूटी पर तैनात है, और ब्लड डोनेशन कैंप भी लगाए गए हैं।

सबक और सवाल: सड़क सुरक्षा पर पुनर्विचार की जरूरत

यह हादसा नई बसों की मॉडिफिकेशन, फिटनेस सर्टिफिकेट और इमरजेंसी एग्जिट की अनदेखी को उजागर करता है। बस चित्तौड़गढ़ में नॉन-एसी के रूप में रजिस्टर्ड थी, लेकिन मालिक ने इसे एसी में बदल दिया था, जो जांच का विषय है। विशेषज्ञों का मानना है कि पटाखों या अन्य ज्वलनशील सामग्री के परिवहन पर भी सख्ती बरतनी चाहिए। इस त्रासदी ने पूरे देश को झकझोर दिया है—क्या हमारी सड़कें यात्रियों की सुरक्षा के लिए तैयार हैं? सरकार ने जांच पूरी होने तक बस ऑपरेटरों पर नकेल कसने का वादा किया है।पीड़ित परिवारों के प्रति संवेदना व्यक्त करते हुए, आशा है कि यह घटना भविष्य में ऐसी विपत्तियों को रोकने का उत्प्रेरक बनेगी।