हाईकोर्ट का धमाकेदार फैसला 15 अप्रैल 2026 तक एक साथ पंचायत-निकाय चुनाव, 31 दिसंबर तक परिसीमन पूरा करे सरकार.
राजस्थान हाईकोर्ट ने राज्य सरकार को सख्त निर्देश दिए हैं कि 6,759 पंचायतों और 55 नगर निकायों के चुनाव 15 अप्रैल 2026 तक एक साथ कराए जाएं। परिसीमन की प्रक्रिया 31 दिसंबर 2025 तक पूरी होनी चाहिए। कार्यकाल समाप्त होने के बावजूद प्रशासकों द्वारा चल रहे निकायों में लोकतंत्र की बहाली के लिए यह ऐतिहासिक फैसला है।
जयपुर, 14 नवंबर 2025: राजस्थान की लोकतांत्रिक नींव को मजबूत करने के लिए राजस्थान हाईकोर्ट ने आज एक ऐतिहासिक और कड़ा रुख अपनाते हुए राज्य सरकार को झटका दिया है। करीब 6,759 पंचायतों और 55 नगर निकायों के कार्यकाल समाप्त हो चुके हैं, लेकिन चुनावों में हो रही देरी पर नाराजगी जताते हुए हाईकोर्ट ने सरकार को सख्त निर्देश जारी किए हैं। अदालत ने स्पष्ट कहा कि लोकतंत्र को अनिश्चितकाल के लिए लटकाया नहीं जा सकता। अब सरकार को 15 अप्रैल 2026 तक सभी पंचायत और नगर निकाय चुनाव एक साथ कराने होंगे, जबकि वार्डों के परिसीमन (सीमांकन) की प्रक्रिया 31 दिसंबर 2025 तक पूरी करनी होगी। यह फैसला न केवल स्थानीय स्वशासन को नई ऊर्जा देगा, बल्कि 'एक राज्य, एक चुनाव' की दिशा में भी महत्वपूर्ण कदम साबित होगा।
पृष्ठभूमि: क्यों लटके थे चुनाव, और कैसे पहुंचा मामला अदालत तक?
राजस्थान में पंचायती राज व्यवस्था की रीढ़ माने जाने वाले ग्राम पंचायतों और शहरी निकायों का कार्यकाल जनवरी 2025 से ही समाप्त हो चुका था। कुल 6,759 ग्राम पंचायतें, जिनमें से कई का कार्यकाल सितंबर-अक्टूबर 2025 में खत्म हो रहा था, और 55 नगर पालिकाएं तथा पांच प्रमुख नगर निगम (जयपुर, उदयपुर, बीकानेर, भरतपुर, अलवर और पाली) चुनावों के बिना प्रशासकों के भरोसे चल रही हैं। पिछली कांग्रेस सरकार द्वारा बनाए गए कई जिलों को वर्तमान भाजपा सरकार ने भंग कर दिया, जिसके चलते जिलों की सीमाओं का पुनर्गठन, पंचायतों का पुनर्संगठन और नगर निकायों के वार्डों का परिसीमन लंबित था।16 जनवरी 2025 को जारी एक अधिसूचना के जरिए सरकार ने इन चुनावों को स्थगित कर दिया और मौजूदा सरपंचों को प्रशासक बनाए रखा। प्रत्येक पंचायत स्तर पर उप सरपंच और वार्ड पंचों की सहायता से प्रशासनिक समिति गठित की गई। सरकार ने तर्क दिया कि राजस्थान पंचायती राज अधिनियम 1994 की धारा 95 के तहत यह वैध है। लेकिन याचिकाकर्ताओं ने इसे संविधान के अनुच्छेद 243E और 243K का उल्लंघन बताया, जो पंचायतों के कार्यकाल को पांच साल निर्धारित करता है और छह महीने के अंदर चुनाव कराने का प्रावधान करता है।इस मामले में पूर्व विधायक सण्याम लोढ़ा और अन्य याचिकाकर्ताओं ने हाईकोर्ट का दरवाजा खटखटाया। अप्रैल 2025 में अदालत ने सरकार से स्पष्टीकरण मांगा, तो जस्टिस अनूप धंड की एकलपीठ ने अगस्त 2025 में देरी पर नाराजगी जताई। उन्होंने कहा, "परिसीमन के नाम पर चुनावों को अनिश्चितकाल के लिए टालना असंवैधानिक है। लोकतंत्र का मतलब है चुने हुए प्रतिनिधि, न कि प्रशासक।" अदालत ने तत्काल चुनाव कराने और प्रशासकों को हटाने का आदेश दिया। हालांकि, सरकार ने डिवीजन बेंच में अपील की, जो 25 अगस्त 2025 को इस आदेश पर स्टे लगा चुकी थी, क्योंकि एक अन्य पीआईएल में परिसीमन पर फैसला सुरक्षित था।आज, एक्टिंग चीफ जस्टिस की अगुवाई वाली डिवीजन बेंच ने सुनवाई पूरी कर फैसला सुनाया। अदालत ने कहा कि देरी से ग्रामीण और शहरी स्तर पर प्रशासनिक शून्य पैदा हो रहा है, जो विकास कार्यों को प्रभावित कर रहा है।
हाईकोर्ट के प्रमुख निर्देश: समयबद्ध कार्रवाई का रोडमैप
हाईकोर्ट के फैसले की मुख्य बातें इस प्रकार हैं:चुनाव की समयसीमा: 15 अप्रैल 2026 तक सभी 6,759 पंचायतों (ग्राम, ब्लॉक और जिला स्तर) तथा 55 नगर निकायों (नगर पालिकाएं, परिषदें और निगम) के चुनाव एक साथ पूरे करें। इससे लागत में कमी आएगी और प्रशासनिक सुगमता बढ़ेगी।
परिसीमन की डेडलाइन: 31 दिसंबर 2025 तक वार्डों और पंचायतों के परिसीमन की प्रक्रिया पूरी करें। पिछला परिसीमन 2019 में हुआ था, जब राज्य में 196 शहरी निकाय थे; अब यह संख्या 309 हो चुकी है, जिनमें से 134 बिना चुने हुए प्रतिनिधियों के चल रहे हैं।
प्रशासकों पर रोक: मौजूदा प्रशासकों को हटाने के मनमाने आदेश रद्द। लेकिन नया प्रशासनिक ढांचा तत्काल गठित करें, ताकि चुनाव तक सुचारू कार्य चले।
आरक्षण मुद्दा: अन्य पिछड़ा वर्ग (ओबीसी) आरक्षण के लिए राज्य ओबीसी आयोग की कार्यकाल 31 दिसंबर 2025 तक बढ़ाया गया है, जो परिसीमन से जुड़ा है।
अदालत ने चेतावनी दी कि निर्देशों का पालन न होने पर अवमानना की कार्रवाई होगी। राज्य निर्वाचन आयोग (एसईसी) को भी निर्देश दिए गए हैं कि वह तुरंत तैयारियां तेज करे।
राजनीतिक प्रतिक्रियाएं: समर्थन और विवाद
फैसले पर भाजपा प्रदेश अध्यक्ष मदन राठौड़ ने कहा, "हम 'एक राज्य, एक चुनाव' के पक्षधर हैं। इससे खर्च बचेगा और विकास पर फोकस बढ़ेगा।" वहीं, कांग्रेस ने इसे सरकार की नाकामी बताया। याचिकाकर्ता प्रेमचंद देवांडा ने इसे "लोकतंत्र की जीत" करार दिया। विशेषज्ञों का मानना है कि यह फैसला राष्ट्रीय स्तर पर 'वन नेशन, वन इलेक्शन' बहस को गति देगा।
प्रभाव: स्थानीय स्तर पर क्या बदलेगा?
इस फैसले से ग्रामीण राजस्थान में विकास योजनाएं, जैसे मनरेगा, जल संरक्षण और बुनियादी ढांचा, तेजी से लागू होंगी। शहरी निकायों में स्वच्छता, सड़कें और जल आपूर्ति पर फोकस बढ़ेगा। एसईसी के अनुसार, चुनावों के लिए 10 नए नगर निगमों में पहली बार वोटिंग होगी। कुल मिलाकर, यह 1 करोड़ से अधिक मतदाताओं को सशक्त बनाएगा।सरकार को अब तेजी से काम करना होगा, वरना अदालत की निगाह बनी रहेगी। यह फैसला न केवल राजस्थान, बल्कि पूरे देश के स्थानीय चुनावों के लिए मिसाल बनेगा।