सिंगापुर में बसे भारतीयों को ठगने वाले साइबर अपराधियों को हरियाणा कोर्ट ने सुनाई 2.5 साल की सजा
पंचकूला, हरियाणा की सीबीआई कोर्ट ने सिंगापुर में रहने वाले भारतीयों को ठगने वाले साइबर अपराधी आदित्य भारद्वाज और दीपक जैन को 2.5 साल की सजा सुनाई। दोनों ने फर्जी कानूनी धमकियों और प्रतिरूपण के जरिए पीड़ितों से पैसे ऐंठे। सीबीआई ने डिजिटल साक्ष्यों और वित्तीय लेनदेन के विश्लेषण के आधार पर 2020 में आरोप पत्र दायर किया था। यह फैसला साइबर अपराध के खिलाफ कड़ा संदेश देता है।

पंचकूला, हरियाणा: साइबर अपराध की दुनिया में एक बड़ा सबक सिखाने वाला फैसला सामने आया है। हरियाणा के पंचकूला में सीबीआई मामलों के विशेष न्यायिक मजिस्ट्रेट ने विदेश में रहने वाले भारतीय नागरिकों को निशाना बनाने वाले एक साइबर ठगी मामले में दो आरोपियों, आदित्य भारद्वाज उर्फ भानु और दीपक जैन उर्फ डीसी उर्फ डीजे, को 2.5 साल की कारावास की सजा सुनाई है। यह मामला सिंगापुर में रहने वाले भारतीयों को झूठी कानूनी धमकियों और प्रतिरूपण के जरिए ठगने से जुड़ा है, जिसने न केवल तकनीकी अपराधों की गंभीरता को उजागर किया, बल्कि डिजिटल प्लेटफॉर्म के दुरुपयोग के खिलाफ कड़ी कार्रवाई की जरूरत को भी रेखांकित किया।
मामले की पृष्ठभूमि और सीबीआई की जांच
सीबीआई ने इस मामले को 27 सितंबर 2016 को दर्ज किया था, जब यह सामने आया कि आदित्य भारद्वाज और दीपक जैन सिंगापुर में रहने वाले भारतीय नागरिकों को निशाना बना रहे थे। आरोपियों पर इल्ज़ाम था कि उन्होंने पीड़ितों को फर्जी कानूनी कार्रवाइयों और कथित पासपोर्ट अनियमितताओं की धमकियां देकर डराया और उन्हें पैसे ट्रांसफर करने के लिए मजबूर किया। ठगों ने खुद को सरकारी या कानूनी अधिकारी बताकर पीड़ितों के साथ विश्वासघात किया और उनकी मेहनत की कमाई को हड़प लिया।
सीबीआई ने इस मामले की जांच को गंभीरता से लिया और डिजिटल साक्ष्यों, वित्तीय लेनदेन और संचार के नेटवर्क का गहन विश्लेषण किया। जांच में सामने आया कि आरोपियों ने अत्याधुनिक तकनीकों का इस्तेमाल कर पीड़ितों को जाल में फंसाया। डिजिटल फोरेंसिक और वित्तीय ट्रेल्स के आधार पर सीबीआई ने 22 दिसंबर 2020 को आरोपियों के खिलाफ मजबूत आरोप पत्र दायर किया।
कोर्ट का फैसला और उसका महत्व
लंबी सुनवाई के बाद, विशेष न्यायिक मजिस्ट्रेट ने दोनों आरोपियों को दोषी करार देते हुए 2.5 साल की जेल की सजा सुनाई। कोर्ट ने अपने फैसले में टिप्पणी की कि यह अपराध न केवल एक गंभीर विश्वासघात है, बल्कि उन लोगों द्वारा किया गया और भी संगीन अपराध है, जो पेशेवर और कानूनी जिम्मेदारियों का दावा करते हैं। कोर्ट ने इस बात पर जोर दिया कि डिजिटल युग में इस तरह के अपराध समाज के लिए खतरा हैं, खासकर जब वे विदेश में रहने वाले उन नागरिकों को निशाना बनाते हैं जो पहले से ही अनजान परिवेश में अपने अधिकारों और सुरक्षा को लेकर चिंतित होते हैं।
साइबर अपराध के खिलाफ सख्त संदेश
यह फैसला साइबर अपराधियों के लिए एक कड़ा संदेश है कि डिजिटल प्लेटफॉर्म का दुरुपयोग और निर्दोष लोगों का शोषण अब बर्दाश्त नहीं किया जाएगा। खासकर विदेश में रहने वाले भारतीय, जो अक्सर ऐसी ठगी का आसान शिकार बन जाते हैं, इस फैसले से राहत महसूस कर सकते हैं। यह मामला न केवल तकनीकी अपराधों के खिलाफ भारत की कानूनी व्यवस्था की ताकत को दर्शाता है, बल्कि यह भी दिखाता है कि सीबीआई जैसे संस्थान ऐसे जटिल मामलों को सुलझाने में सक्षम हैं।
साइबर ठगी से बचाव के लिए जागरूकता जरूरी
इस मामले ने एक बार फिर साइबर जागरूकता की जरूरत को रेखांकित किया है। विशेषज्ञों का कहना है कि नागरिकों को अनजान कॉल्स, ईमेल या मैसेज पर भरोसा करने से पहले उनकी सत्यता की जांच करनी चाहिए। खासकर विदेश में रहने वाले भारतीयों को सलाह दी जाती है कि वे किसी भी कानूनी या सरकारी दावे की पुष्टि संबंधित दूतावास या आधिकारिक चैनलों से करें।
पंचकूला कोर्ट का यह फैसला न केवल दोषियों को सजा देने का मामला है, बल्कि यह साइबर अपराध के खिलाफ एक मजबूत निवारक के रूप में भी सामने आया है। यह उन लोगों के लिए एक चेतावनी है जो तकनीक का दुरुपयोग कर मासूम लोगों को ठगने की कोशिश करते हैं। सीबीआई की सटीक जांच और कोर्ट के इस फैसले ने यह स्पष्ट कर दिया है कि कानून का लंबा हाथ हर उस अपराधी तक पहुंचेगा, जो डिजिटल दुनिया में अपराध करने की हिम्मत करता है।