अंता उपचुनाव में दुष्यंत सिंह को सौंपी कमान वसुंधरा राजे का गढ़, BJP की प्रतिष्ठा का महायुद्ध

बीजेपी ने अंता विधानसभा उपचुनाव के लिए दुष्यंत सिंह को चुनाव प्रभारी बनाया है। यह सीट वसुंधरा राजे के गढ़ में आती है, इसलिए उनकी प्रतिष्ठा दांव पर है। पार्टी ने 13 सदस्यीय चुनाव समिति गठित की, जिसमें 2 सांसद, 9 विधायक व 2 मंत्री शामिल हैं। 40 स्टार प्रचारकों की सूची पहले जारी हो चुकी है। सीट कंवरलाल मीणा की अयोग्यता से खाली हुई। वोटिंग 11 नवंबर, नतीजे 14 नवंबर को।

Oct 28, 2025 - 14:53
अंता उपचुनाव में दुष्यंत सिंह को सौंपी कमान वसुंधरा राजे का गढ़, BJP की प्रतिष्ठा का महायुद्ध

जयपुर:राजस्थान की राजनीति में अंता विधानसभा उपचुनाव ने एक बार फिर हलचल मचा दी है। बारां जिले की इस सीट पर 11 नवंबर को वोटिंग और 14 नवंबर को नतीजे आने हैं, लेकिन इससे पहले ही सियासी दलों ने कमर कस ली है। भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) ने इस महत्वपूर्ण चुनाव को लेकर अपनी रणनीति को और मजबूत करते हुए पूर्व मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे के बेटे और झालावाड़-बारां सांसद दुष्यंत सिंह को चुनाव प्रभारी की बड़ी जिम्मेदारी सौंप दी है। यह फैसला न केवल स्थानीय समीकरणों को साधने का प्रयास है, बल्कि वसुंधरा राजे की राजनीतिक विरासत को बचाने की कोशिश भी माना जा रहा है। आखिर क्यों यह सीट राजे परिवार के लिए प्रतिष्ठा का सवाल बनी हुई है? 

अंता उपचुनाव का पृष्ठभूमि: क्यों खाली हुई सीट?

अंता विधानसभा सीट झालावाड़-बारां लोकसभा क्षेत्र के अंतर्गत आती है, जो दुष्यंत सिंह का संसदीय क्षेत्र है। यह सीट हाल ही में खाली हुई है, जब बीजेपी विधायक कंवरलाल मीणा की सदस्यता रद्द कर दी गई। मीणा पर 20 साल पुराने एक मामले में एसडीएम पर पिस्टल तानने का आरोप साबित होने के बाद मई 2025 में उनकी अयोग्यता घोषित की गई थी। कंवरलाल मीणा वसुंधरा राजे के करीबी माने जाते हैं और 2023 के विधानसभा चुनाव में उन्होंने कांग्रेस के दिग्गज नेता प्रमोद जैन भाया को 5,000 से अधिक वोटों से हराया था। इससे पहले 2013 में बीजेपी के प्रभुलाल सैनी ने भी इसी सीट से जीत हासिल की थी, जो राजे सरकार में मंत्री बने थे। कुल मिलाकर, अंता पर अब तक चार विधानसभा चुनाव हुए हैं, जिनमें बीजेपी और कांग्रेस दोनों ने दो-दो बार जीत दर्ज की है। लेकिन हाड़ौती क्षेत्र का यह गढ़ वसुंधरा राजे के प्रभाव वाला माना जाता है, जहां उनकी सियासी पैठ गहरी है।उपचुनाव के नतीजे सरकार की संख्या पर तो असर नहीं डालेंगे, लेकिन राजनीतिक धारणा पर गहरा प्रभाव छोड़ेंगे। बीजेपी के लिए जीत का मतलब जनता की मुहर होगा, जबकि हार को विपक्ष सरकार के खिलाफ नाराजगी का हथियार बना सकता है।

दुष्यंत सिंह को क्यों मिली यह बड़ी जिम्मेदारी?

बीजेपी ने अंता उपचुनाव को लेकर एक 13 सदस्यीय चुनाव समिति का गठन किया है, जिसमें दुष्यंत सिंह को प्रमुख प्रभारी बनाया गया है। यह फैसला स्थानीय समीकरणों को ध्यान में रखते हुए लिया गया है। अंता सीट दुष्यंत सिंह के संसदीय क्षेत्र का हिस्सा होने से वे यहां की जमीन से जुड़े हैं। 2024 के लोकसभा चुनाव में दुष्यंत ने झालावाड़-बारां से कांग्रेस की उर्मिला जैन भाया को 3.7 लाख वोटों से करारी शिकस्त दी थी, जो उनकी मजबूत पकड़ को दर्शाता है। पार्टी ने उन्हें प्रभारी बनाकर राजे परिवार के समर्थकों को एकजुट करने की कोशिश की है। सूत्रों के मुताबिक, प्रत्याशी चयन में भी दुष्यंत सिंह की सलाह अहम रही। नरेश मीणा जैसे निर्दलीय उम्मीदवारों की एंट्री से टेंशन बढ़ी है, लेकिन दुष्यंत की रणनीति से बीजेपी को उम्मीद है कि वसुंधरा गुट का पूरा समर्थन मिलेगा।चुनाव समिति में 2 सांसद, 9 विधायक और 2 मंत्रियों को शामिल किया गया है। मंत्री जोगाराम पटेल को चुनाव प्रभारी मंत्री बनाया गया है, जबकि विधायक श्रीचंद कृपलानी और जिला प्रभारी छगन माहुर को सह-प्रभारी की जिम्मेदारी दी गई। चुनाव प्रबंधन का दायित्व नरेश सिकरवार और महेंद्र कुमावत को सौंपा गया है। यह टीम अंता के जातिगत समीकरणों—जैसे सैनी, माली और गुर्जर समाज—को साधने पर फोकस कर रही है।

वसुंधरा राजे की प्रतिष्ठा क्यों दांव पर?

अंता को वसुंधरा राजे का 'गढ़' कहा जाता है। वे खुद 1989 से 2009 तक झालावाड़-बारां से सांसद रहीं और हाड़ौती क्षेत्र में उनकी सियासी विरासत बरकरार है। इस सीट पर राजे समर्थक उम्मीदवारों की जीत को उनकी ताकत का आईना माना जाता है। 2023 में कंवरलाल मीणा की जीत को राजे खेमे की सफलता कहा गया था। अब उपचुनाव में हार का मतलब राजे के प्रभाव में कमी का संकेत होगा, खासकर जब लोकसभा स्पीकर ओम बिरला का भी इस क्षेत्र पर असर है। राजे ने हाल ही में बीजेपी प्रत्याशी मोरपाल सुमन से मुलाकात की, जो उनके समर्थन का स्पष्ट संकेत है। सुमन को सैनी समाज से जोड़कर देखा जाता है, जो क्षेत्र में प्रभावशाली है। बीजेपी के अंदरूनी स्रोत बताते हैं कि मुख्यमंत्री भजनलाल शर्मा और प्रदेश अध्यक्ष मदन राठौड़ के साथ राजे के बीच विचार-विमर्श से ही टिकट फाइनल हुआ। अगर बीजेपी जीतती है, तो यह राजे की वापसी का संकेत बनेगा।

बीजेपी के स्टार प्रचारक: कमान मजबूत करने की रणनीति

इससे पहले बीजेपी ने 40 स्टार प्रचारकों की सूची जारी की थी, जो अंता में जोरदार अभियान चलाएंगे। इसमें मुख्यमंत्री भजनलाल शर्मा, प्रदेशाध्यक्ष मदन राठौड़, केंद्रीय मंत्री राधा मोहन दास अग्रवाल, वसुंधरा राजे, भूपेंद्र यादव, गजेंद्र सिंह शेखावत, अर्जुन राम मेघवाल, भागीरथ चौधरी, दिया कुमारी, प्रेम चंद बैरवा, राजेंद्र राठौड़, सतीश पूनिया, सीपी जोशी, अलका गुर्जर, किरोड़ी लाल मीणा, घनश्याम तिवाड़ी, अरुण चतुर्वेदी, कनक मल कटारा, राज्यवर्धन राठौड़, राधेश्याम बैरवा, महेंद्रजीत सिंह मालवीया, हेमंत मीणा, अविनाश गहलोत, प्रभु लाल सैनी, कल्पना सिंह, बाबू लाल खराड़ी, नरेंद्र नागर, कन्हैया लाल चौधरी, दुष्यंत सिंह, मन्ना लाल रावत, मोती लाल मीणा, हीरा लाल नागर, मुकेश दाधीच, ओम प्रकाश भड़ाना, गौतम दक, जोगाराम पटेल, बाबू लाल वर्मा, जितेंद्र कुमार गोठवाल और ललित मीणा शामिल हैं। ये प्रचारक 1 नवंबर से मैदान में उतरेंगे।

प्रचार समिति के प्रमुख चेहरे: स्थानीय स्तर पर जोर

चुनाव प्रचार की कमान राज्यसभा सांसद राजेंद्र गहलोत, मंत्री मंजू बाघमार, विधायक राधेश्याम बैरवा, सुरेश धाकड़, विश्वनाथ मेघवाल, अनिता भदेल, प्रताप सिंघवी, चंद्रभान सिंह आक्या, ललित मीणा, पूर्व विधायक बनवारी लाल सिंघल और वरिष्ठ कार्यकर्ता तुलसीराम धाकड़ को सौंपी गई है। ये नेता गांव-गांव जाकर विकास योजनाओं का प्रचार करेंगे।

वर्तमान चुनौतियां और उम्मीदें

बीजेपी को हाल ही में राहत मिली है, जब दो बागी उम्मीदवारों ने नाम वापस ले लिए। पूर्व विधायक रामपाल मेघवाल जैसे नेताओं की चुनौती अभी बाकी है, लेकिन मोरपाल सुमन की स्थानीय छवि और राजे परिवार का समर्थन पार्टी के हौसले बुलंद कर रहा है। कांग्रेस ने प्रमोद जैन भाया को मैदान में उतारा है, जो अनुभवी हैं। निर्दलीय नरेश मीणा की एंट्री से त्रिकोणीय मुकाबला हो गया है। कुल मिलाकर, अंता उपचुनाव राजस्थान की सियासत का सेमीफाइनल जैसा लग रहा है—कहां जीतेगी बीजेपी, और वसुंधरा राजे का गढ़ बरकरार रहेगा या नहीं? नतीजों का इंतजार ही रोमांच है!