AI-संचालित ट्रैक्टर: हरियाणा के किसान की तकनीकी क्रांति
हरियाणा के करनाल जिले के जमालपुर गाँव के किसान बीर विर्क ने AI-संचालित ट्रैक्टरों से खेती में क्रांति ला दी है। ये ड्राइवरलेस ट्रैक्टर जुताई, बुवाई और अन्य कार्य स्वचालित रूप से करते हैं, जिससे 30-40% समय और डीजल की बचत होती है। स्वीडन की तकनीक से संचालित ये ट्रैक्टर बीर ने अमेरिका में देखी गई उन्नत खेती से प्रेरित होकर अपनाए। वे हरियाणा और उत्तराखंड में 350 एकड़ पर 15 ट्रैक्टर चला रहे हैं। यह तकनीक सटीक बुवाई और कीटनाशक छिड़काव से पैदावार बढ़ाती है। भारत में AI खेती का चलन बढ़ रहा है, लेकिन डिजिटल साक्षरता और लागत चुनौतियां हैं। बीर का प्रयास भारतीय कृषि के तकनीकी भविष्य की झलक है।

हरियाणा के करनाल जिले के जमालपुर गाँव में एक युवा किसान, बीर विर्क, ने आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस (AI) से संचालित ट्रैक्टरों के साथ खेती में एक नई क्रांति की शुरुआत की है। ये हाईटेक ट्रैक्टर बिना किसी ड्राइवर के खेतों में जुताई, बुवाई और अन्य कृषि कार्यों को अंजाम देते हैं, जिससे समय, श्रम और डीजल की लागत में भारी बचत हो रही है। बीर विर्क की यह पहल न केवल स्थानीय किसानों के लिए प्रेरणा का स्रोत बन रही है, बल्कि भारत में तकनीक से प्रेरित खेती के भविष्य को भी दर्शा रही है।
तकनीक से प्रेरित खेती की शुरुआत
बीर विर्क ने अमेरिका में एक दशक तक रहने के दौरान वहां की उन्नत कृषि प्रथाओं को देखा। वहां की तकनीकी खेती से प्रेरित होकर, उन्होंने भारत में अपने खेतों में AI-संचालित ट्रैक्टरों का उपयोग शुरू किया। स्वीडन की एक कंपनी द्वारा डिजाइन की गई यह AI प्रणाली ग्लोबल नेविगेशन सैटेलाइट सिस्टम (GNSS) सिग्नलों पर काम करती है, जो 0.01 सेमी तक की सटीकता के साथ ट्रैक्टर को नियंत्रित करती है। बीर के अनुसार, इस प्रणाली को स्थापित करना बेहद आसान है और इसे एक लैपटॉप की तरह के उपकरणों के साथ मात्र एक घंटे में इंस्टॉल किया जा सकता है। स्वीडन की कंपनी के तकनीकी विशेषज्ञ व्हाट्सएप और वीडियो कॉल के माध्यम से लगातार सहायता प्रदान करते हैं।
लागत और समय की बचत
बीर विर्क ने हरियाणा और उत्तराखंड में 350 एकड़ भूमि पर लगभग 15 AI-संचालित ट्रैक्टरों का उपयोग शुरू किया है। ये ट्रैक्टर ऑटो-स्टियरिंग और न्यूमैटिक प्लांटर जैसी तकनीकों से लैस हैं, जो बीजों को सटीक दूरी और चौड़ाई पर बोते हैं, जिससे फसल की पैदावार में वृद्धि होती है। इसके अलावा, हुड-माउंटेड स्प्रे पंप कीटनाशकों और खाद के छिड़काव को और भी प्रभावी बनाता है। बीर का दावा है कि इस तकनीक से डीजल और समय की 30-40% तक बचत होती है, और यह साधारण किसानों के लिए भी उपयोग में आसान है।
अन्य किसानों के लिए प्रेरणा
बीर विर्क के इस नवाचार ने न केवल करनाल, बल्कि आसपास के राज्यों के किसानों का ध्यान भी खींचा है। उनके खेतों पर इन ड्राइवरलेस ट्रैक्टरों को देखने के लिए दूर-दूर से लोग आ रहे हैं। दो साल पहले, जब बीर ने स्वीडन से लगभग 4 लाख रुपये प्रति ट्रैक्टर की लागत से यह सिस्टम खरीदा था, तब कई लोगों को इसकी सफलता पर संदेह था। लेकिन आज, यह तकनीक उनकी मेहनत और दूरदर्शिता का जीवंत प्रमाण बन चुकी है।
भारत में AI-आधारित खेती का भविष्य
भारत में कृषि क्षेत्र में AI का उपयोग तेजी से बढ़ रहा है। ड्रोन, सैटेलाइट इमेजरी, और IoT-आधारित उपकरणों के साथ, किसान अब फसल निगरानी, कीट नियंत्रण, और संसाधन प्रबंधन में तकनीक का लाभ उठा रहे हैं। उदाहरण के लिए, IIT कानपुर की मदद से विकसित AgroTrace डिवाइस खेतों में पानी और खाद की जरूरत को 24 घंटे मॉनिटर करती है, जिसका उपयोग 4 राज्यों के 100 से अधिक किसान कर रहे हैं। इसी तरह, Farmonaut जैसी कंपनियां AI और सैटेलाइट इमेजरी का उपयोग करके प्रीसीजन फार्मिंग को बढ़ावा दे रही हैं।
बीर विर्क का यह प्रयास भारत में तकनीकी खेती के बढ़ते चलन का एक हिस्सा है। वैश्विक स्तर पर, कृषि में AI बाजार का मूल्य 2023 में 1.7 बिलियन डॉलर था, जो 2028 तक 4.7 बिलियन डॉलर तक पहुंचने की उम्मीद है।
चुनौतियां और समाधान
हालांकि AI-आधारित खेती के कई फायदे हैं, लेकिन ग्रामीण भारत में डिजिटल साक्षरता की कमी और तकनीकी उपकरणों की लागत अभी भी चुनौतियां हैं। बीर विर्क जैसे किसानों के प्रयास इन बाधाओं को दूर करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकते हैं। सरकार और निजी क्षेत्र के सहयोग से, AI उपकरणों को अधिक सस्ता और उपयोगकर्ता-अनुकूल बनाया जा सकता है, ताकि छोटे और मध्यम स्तर के किसान भी इनका लाभ उठा सकें।