7 अगस्त 2025 को सुप्रीम कोर्ट ने प्रवर्तन निदेशालय (ED) को कड़ी फटकार लगाते हुए कहा कि वह ‘बदमाश की तरह’ काम नहीं कर सकता और उसे कानून के दायरे में रहकर अपनी कार्रवाइयां करनी होंगी। कोर्ट ने ED की कार्यशैली और उसकी छवि को लेकर गहरी चिंता जताई, यह कहते हुए कि कानून लागू करने वाली और कानून तोड़ने वाली संस्थाओं में स्पष्ट अंतर होना चाहिए। आइए इस खबर के प्रमुख पहलुओं पर नजर डालें।
सुप्रीम कोर्ट की तल्ख टिप्पणी: ‘ED बदमाश नहीं’
गुरुवार को सुप्रीम कोर्ट ने एक सुनवाई के दौरान ED की कार्रवाइयों पर सवाल उठाए। कोर्ट ने कहा, “प्रवर्तन निदेशालय को यह समझना होगा कि वह कोई बदमाश नहीं है। उसे कानून के दायरे में रहकर काम करना होगा।” यह टिप्पणी एक याचिका की सुनवाई के दौरान आई, जिसमें ED की गिरफ्तारी और जांच प्रक्रिया पर सवाल उठाए गए थे। कोर्ट ने जोर देकर कहा कि जांच एजेंसी की कार्रवाइयां पारदर्शी और कानून सम्मत होनी चाहिए।
ED की छवि पर चिंता: कानून का सम्मान जरूरी
सुप्रीम कोर्ट ने ED की कार्यशैली को लेकर उसकी सार्वजनिक छवि पर चिंता जताई। कोर्ट ने कहा, “कानून लागू करने वाली संस्था और कानून का उल्लंघन करने वाले निकाय में अंतर होना चाहिए। ED को अपनी कार्यवाही में इस अंतर को बनाए रखना होगा।” कोर्ट ने यह भी संकेत दिया कि ED की कुछ कार्रवाइयां ऐसी रही हैं, जिनसे जनता का भरोसा कम हुआ है।
मामले का पृष्ठभूमि: याचिका और विवाद
यह टिप्पणी एक याचिका की सुनवाई के दौरान आई, जिसमें ED की गिरफ्तारी प्रक्रिया और जांच के तरीकों पर सवाल उठाए गए थे। याचिकाकर्ता ने आरोप लगाया कि ED ने कुछ मामलों में मनमाने ढंग से कार्रवाई की और बिना ठोस सबूतों के लोगों को परेशान किया। सुप्रीम कोर्ट ने इस पर गंभीर रुख अपनाते हुए ED को अपनी प्रक्रियाओं में सुधार लाने की सलाह दी।
कानूनी जवाबदेही पर जोर
सुप्रीम कोर्ट ने ED को निर्देश दिया कि वह अपनी शक्तियों का इस्तेमाल जिम्मेदारी के साथ करे। कोर्ट ने कहा कि धन शोधन निवारण अधिनियम (PMLA) के तहत मिली शक्तियां असीमित नहीं हैं और इनका उपयोग नागरिकों के अधिकारों का उल्लंघन किए बिना करना होगा। कोर्ट ने यह भी स्पष्ट किया कि ED को अपनी कार्रवाइयों का औचित्य साबित करना होगा, खासकर जब मामला गिरफ्तारी या संपत्ति जब्ती से जुड़ा हो।
आगे की राह: ED के लिए चुनौती
सुप्रीम कोर्ट की इस फटकार ने ED के लिए एक बड़ी चुनौती पेश की है। विशेषज्ञों का मानना है कि यह टिप्पणी जांच एजेंसी को अपनी प्रक्रियाओं में पारदर्शिता और जवाबदेही लाने के लिए मजबूर कर सकती है। साथ ही, यह नागरिकों के अधिकारों की रक्षा और जांच एजेंसियों की मनमानी पर अंकुश लगाने की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम है।