श्रीनगर में ईद-उल-अजहा पर जामा मस्जिद और ईदगाह में नमाज पर रोक, नेताओं ने जताई नाराजगी

श्रीनगर में ईद-उल-अजहा 2025 के मौके पर जामा मस्जिद और ईदगाह में सातवें साल भी नमाज पर रोक लगाई गई, मीरवाइज उमर फारूक को नजरबंद किया गया। उमर अब्दुल्ला, महबूबा मुफ्ती सहित नेताओं ने इसकी निंदा की, जबकि हजरतबल दरगाह सहित अन्य स्थानों पर नमाज शांतिपूर्ण रही।

Jun 7, 2025 - 17:06
श्रीनगर में ईद-उल-अजहा पर जामा मस्जिद और ईदगाह में नमाज पर रोक, नेताओं ने जताई नाराजगी

ईद-उल-अजहा के पावन अवसर पर श्रीनगर की ऐतिहासिक जामा मस्जिद और ईदगाह में लगातार सातवें साल ईद की नमाज अदा करने की अनुमति नहीं दी गई। अंजुमन औकाफ जामा मस्जिद के अनुसार, प्रशासन ने जामा मस्जिद के दरवाजे बंद कर दिए और फज्र की नमाज सहित ईद की नमाज पर पूर्ण प्रतिबंध लगा दिया। इसके अलावा, ईद का खुतबा देने वाले प्रमुख धार्मिक नेता मीरवाइज उमर फारूक को भी नजरबंद कर दिया गया।

मीरवाइज ने इस कदम को मुसलमानों के धार्मिक अधिकारों का घोर उल्लंघन करार देते हुए इसकी कड़ी निंदा की। उन्होंने कहा, "यह न केवल धार्मिक स्वतंत्रता पर हमला है, बल्कि कश्मीर के लोगों की भावनाओं को ठेस पहुंचाने वाला कदम भी है।"

नेताओं ने जताई नाराजगी

जम्मू-कश्मीर के मुख्यमंत्री उमर अब्दुल्ला ने इन प्रतिबंधों पर गहरी निराशा व्यक्त की। उन्होंने कहा, "लोगों पर भरोसा किया जाना चाहिए। धार्मिक आयोजनों पर इस तरह की पाबंदियां न केवल गलत हैं, बल्कि समाज में विश्वास की कमी को भी दर्शाती हैं।"

पीपुल्स डेमोक्रेटिक पार्टी (पीडीपी) की नेता महबूबा मुफ्ती और उनकी बेटी इल्तिजा मुफ्ती ने भी प्रशासन के इस फैसले की कड़े शब्दों में आलोचना की। महबूबा ने इसे "शर्मनाक और अन्यायपूर्ण" करार दिया, जबकि इल्तिजा ने कहा, "यह कश्मीरियों के धार्मिक अधिकारों पर खुला हमला है।"

प्रशासन की ओर से कोई स्पष्टीकरण नहीं

प्रशासन ने इन प्रतिबंधों के पीछे कोई आधिकारिक कारण नहीं बताया। हालांकि, अतीत में कानून और व्यवस्था की चिंताओं का हवाला दिया जाता रहा है। खासकर 2016 में हिजबुल मुजाहिदीन के आतंकी बुरहान वानी की मौत और 2019 में अनुच्छेद 370 के निरस्त होने के बाद से इस तरह के प्रतिबंध देखने को मिले हैं।

हजरतबल दरगाह सहित अन्य स्थानों पर नमाज

हालांकि, कश्मीर घाटी में हजरतबल दरगाह सहित अन्य मस्जिदों और दरगाहों पर ईद की नमाज बिना किसी व्यवधान के अदा की गई। इन स्थानों पर बड़ी संख्या में लोग एकत्र हुए और शांतिपूर्ण ढंग से नमाज अदा की।

इस घटना ने एक बार फिर कश्मीर में धार्मिक स्वतंत्रता और प्रशासनिक नीतियों पर सवाल खड़े किए हैं। विशेषज्ञों का मानना है कि इस तरह के कदमों से न केवल स्थानीय लोगों का विश्वास कम होता है, बल्कि क्षेत्र में शांति और स्थिरता की कोशिशों को भी नुकसान पहुंचता है।

Yashaswani Journalist at The Khatak .