पश्चिमी राजस्थान के सबसे बड़े महिला अस्पताल पर फिर सवाल, पाक विस्थापितों ने लगाए इलाज में देरी के आरोप

जोधपुर के उम्मेद अस्पताल पर दो पाकिस्तानी विस्थापित मरीजों के परिजनों ने इलाज में देरी और सरकारी सुविधाओं की कमी का आरोप लगाया। रहमता और गोरी के मामलों में वीजा समाप्त होने के कारण इलाज में बाधा आई। अस्पताल अधीक्षक डॉ. मोहन मकवाना ने दावा किया कि इलाज से इनकार नहीं किया जाता, लेकिन गैर-भारतीयों को सरकारी सहायता सीमित है। मामला स्वास्थ्य सेवाओं तक पहुंच पर सवाल उठाता है।

Jun 1, 2025 - 19:14
पश्चिमी राजस्थान के सबसे बड़े महिला अस्पताल पर फिर सवाल, पाक विस्थापितों ने लगाए इलाज में देरी के आरोप

जोधपुर के उम्मेद अस्पताल, जो पश्चिमी राजस्थान का सबसे बड़ा महिला अस्पताल है, एक बार फिर विवादों के घेरे में है। दो पाकिस्तानी विस्थापित मरीजों के परिजनों ने अस्पताल प्रशासन पर इलाज में लापरवाही और देरी के गंभीर आरोप लगाए हैं। जैसलमेर से रेफर की गई मरीज रहमता और दूसरी मरीज गोरी के परिजनों का दावा है कि उन्हें समय पर उचित इलाज या सरकारी सुविधाएं नहीं मिलीं। इन आरोपों ने अस्पताल की कार्यप्रणाली पर सवाल खड़े किए हैं, जबकि अस्पताल अधीक्षक ने इन दावों का खंडन करते हुए अपनी स्थिति स्पष्ट की है।

मरीजों के परिजनों के आरोप

रहमता के परिजनों का कहना है कि उन्हें अस्पताल में मुफ्त सुविधाएं या सरकारी जांच का लाभ नहीं मिला। उनके पति ने बताया कि वीजा समाप्त होने का हवाला देकर उनकी पत्नी का इलाज शुरू नहीं किया गया। तीन दिन की देरी के बाद, अस्पताल अधीक्षक के हस्तक्षेप के बाद ही जांच और इलाज शुरू हो सका। अब रहमता का ऑपरेशन होने की बात कही जा रही है।वहीं, गोरी के रिश्तेदारों ने बताया कि नसबंदी के लिए भर्ती होने के बावजूद उनका ऑपरेशन नहीं किया गया। उन्हें अस्पताल से छुट्टी दे दी गई और बाद में आने को कहा गया। परिजनों का कहना है कि इस देरी से उनकी परेशानी बढ़ गई है।

अस्पताल अधीक्षक का पक्ष

उम्मेद अस्पताल के अधीक्षक डॉ. मोहन मकवाना ने इन आरोपों का जवाब देते हुए कहा कि मरीजों की नागरिकता उनके लिए मायने नहीं रखती। भारतीय नागरिकों को सरकारी नीतियों के तहत मुफ्त इलाज मिलता है, लेकिन गैर-भारतीय नागरिकों के लिए ऐसी सुविधाएं सीमित हैं। रहमता के मामले में उन्होंने बताया कि उसकी दो बार प्री-डिलीवरी हो चुकी है, और अब उसका ऑपरेशन तय है। हालांकि, वीजा समाप्त होने के कारण उसे सरकारी सहायता नहीं दी जा रही। गोरी के मामले में, डॉ. मकवाना ने बताया कि उनकी हीमोग्लोबिन की कमी के कारण ऑपरेशन में देरी हुई है। उन्हें दवाइयां दी गई हैं और 15 तारीख को दोबारा बुलाया गया है, जब उनकी जांच के बाद ऑपरेशन होगा।

अस्पताल प्रशासन का दावा

डॉ. मकवाना ने स्पष्ट किया कि गैर-भारतीय नागरिकों की जानकारी पुलिस को दी जाती है, लेकिन इलाज में किसी तरह की कोताही नहीं बरती जाती। उन्होंने कहा, "हम मरीजों के इलाज के लिए पूरी तरह प्रतिबद्ध हैं और किसी भी स्थिति में इलाज से इनकार नहीं करते।" उनके इस बयान के बावजूद, मरीजों के परिजनों के आरोपों ने अस्पताल की व्यवस्था पर सवाल उठाए हैं।

उम्मेद अस्पताल लंबे समय से पश्चिमी राजस्थान में महिलाओं के लिए स्वास्थ्य सेवाओं का प्रमुख केंद्र रहा है। लेकिन, पहले भी इस अस्पताल पर इलाज में लापरवाही और सुविधाओं की कमी के आरोप लगते रहे हैं। खासकर, सीमावर्ती क्षेत्रों से आने वाले पाकिस्तानी विस्थापितों के लिए वीजा और नागरिकता से जुड़े नियम इलाज की प्रक्रिया को जटिल बनाते हैं। इन मामलों ने एक बार फिर यह सवाल खड़ा किया है कि क्या अस्पताल प्रशासन सभी मरीजों के लिए समान और त्वरित स्वास्थ्य सेवाएं सुनिश्चित कर पा रहा है?

यह मामला न केवल उम्मेद अस्पताल की कार्यप्रणाली पर सवाल उठाता है, बल्कि सीमावर्ती क्षेत्रों में रहने वाले विस्थापितों की स्वास्थ्य सेवाओं तक पहुंच को भी उजागर करता है। अस्पताल प्रशासन के दावों और मरीजों के परिजनों के आरोपों के बीच सच्चाई क्या है, यह जांच का विषय है। इस बीच, यह जरूरी है कि सभी मरीजों को समय पर और उचित इलाज मिले, चाहे उनकी नागरिकता कुछ भी हो।

Ashok Shera "द खटक" एडिटर-इन-चीफ