जगन्नाथ पुरी में स्नान पूर्णिमा और रथयात्रा की तैयारियां...11 जून को भगवान जगन्नाथ का विशेष स्नान
ओडिशा के जगन्नाथ पुरी में 11 जून 2025 को स्नान पूर्णिमा मनाई जाएगी, जब भगवान जगन्नाथ, बलभद्र, सुभद्रा और सुदर्शन को मंदिर के स्वर्ण कुएं के जल से 108 सोने के घड़ों द्वारा स्नान कराया जाएगा। स्नान के बाद भगवान 11 से 25 जून तक "बीमार" रहते हैं, इस दौरान आलारनाथ मंदिर में दर्शन का विशेष महत्व है। 26 जून को नव यौवन दर्शन और 27 जून से गुंडीचा रथयात्रा शुरू होगी।

ओडिशा के जगन्नाथ पुरी में 11 जून 2025 को स्नान पूर्णिमा मनाई जाएगी। इस दिन भगवान जगन्नाथ अपने भाई बलभद्र, बहन सुभद्रा और सुदर्शन के साथ श्री मंदिर के स्नान मंडप में भक्तों के सामने स्नान करेंगे। यह वर्ष का एकमात्र अवसर है जब भगवान को मंदिर परिसर में स्थित स्वर्ण कुएं के पवित्र जल से नहलाया जाता है।
स्नान की प्रक्रिया
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स्वर्ण कुआं: मंदिर प्रांगण में स्थित 4-5 फीट चौड़ा यह कुआं पांड्य राजा इंद्रद्युम्न द्वारा निर्मित है, जिसकी दीवारों में सोने की ईंटें लगी हैं। माना जाता है कि इसमें सभी तीर्थों का जल समाहित है। कुएं का डेढ़ से दो टन वजनी ढक्कन 12-15 सेवकों द्वारा खोला जाता है।
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स्नान विधि: वैदिक मंत्रों के साथ 108 सोने के घड़ों में कस्तूरी, केसर, चंदन और औषधियों युक्त जल से स्नान कराया जाता है। भगवान जगन्नाथ को 35, बलभद्र को 33, सुभद्रा को 22 और सुदर्शन को 18 घड़े जल अर्पित किए जाते हैं।
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मूर्तियों की सुरक्षा: चूंकि भगवान की मूर्तियां लकड़ी की हैं और पवित्र रंगों से सजी हैं, इन पर सूती कपड़े लपेटे जाते हैं ताकि जल से हानि न हो।
क्यों खास है यह स्नान?
स्नान पूर्णिमा का महत्व इसलिए है क्योंकि साल भर भगवान को गर्भगृह में शीशे में उनकी छवि पर जल चढ़ाकर स्नान कराया जाता है। ऐसा दो कारणों से किया जाता है:
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मूर्तियों की सुरक्षा: लकड़ी की मूर्तियों पर रोज जल चढ़ाने से रंग और आकृति खराब हो सकती है।
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मान्यता: भगवान कोमल स्वभाव के हैं, और रोज स्नान से वे बीमार पड़ सकते हैं।
अनवसर पूजा: 11 से 25 जून तक भगवान की बीमारी
स्नान के बाद परंपरा के अनुसार भगवान जगन्नाथ को बुखार हो जाता है, जिसके कारण वे 11 से 25 जून तक भक्तों को दर्शन नहीं देते। इस期间:
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विशेष व्यवस्था: भगवान को मुख्य सिंहासन से हटाकर मंदिर के बांस के कक्ष में रखा जाता है।
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भोग: 56 भोग के बजाय औषधीयुक्त सामग्री, दूध, और शहद का भोग लगाया जाता है।
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महत्वपूर्ण तिथियां:
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16 जून (अनवसर पंचमी): भगवान के अंगों में आयुर्वेदिक फुल्लरी तेल की मालिश की जाती है, जिससे बुखार में राहत मिलती है।
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20 जून (अनवसर दशमी): भगवान रत्न सिंहासन पर विराजमान होते हैं।
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21 जून: विशेष औषधियां (खलि लागि) लगाई जाती हैं।
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25 जून: भगवान के विग्रह को सजाया जाता है।
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26 जून: नव यौवन दर्शन होंगे, और रथयात्रा की आज्ञा ली जाएगी।
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आलारनाथ मंदिर में दर्शन
जब भगवान जगन्नाथ बीमार रहते हैं, भक्त 27 किलोमीटर दूर ब्रह्मगिरी के आलारनाथ मंदिर में दर्शन करते हैं। मान्यता है कि इस आलारनाथ मंदिर में दर्शन से भगवान जगन्नाथ के दर्शन का पुण्य प्राप्त होता है। आलारनाथ भगवान जगन्नाथ के परम भक्त माने जाते हैं।
रथयात्रा: 27 जून से शुरू
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26 जून: नव यौवन दर्शन के बाद रथयात्रा की准备ियां शुरू होंगी।
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27 जून: गुंडीचा रथयात्रा शुरू होगी, जिसमें भगवान जगन्नाथ, बलभद्र, और सुभद्रा रथ पर सवार होकर गुंडीचा मंदिर (मौसी का घर) जाएंगे।
स्नान पूर्णिमा और रथयात्रा का महत्व
स्नान पूर्णिमा और रथयात्रा न केवल धार्मिक, बल्कि सांस्कृतिक और सामाजिक दृष्टि से भी महत्वपूर्ण हैं। यह उत्सव भक्तों को भगवान जगन्नाथ के प्रति अपनी श्रद्धा व्यक्त करने का अवसर देता है। स्वर्ण कुएं का जल, औषधीय स्नान, और अनवसर पूजा जैसी परंपराएं इस उत्सव को अनूठा बनाती हैं।