गुजरात के युवक को 25 साल बाद चला मालूम, मेरे पिता जिंदा है और अभी बाड़मेर में है- एक अनोखी कहानी
एक 25 वर्षीय युवक को पता चला कि उसका पिता, जिसे वह मरा मानता था, जिंदा है और उसने उसे व उसकी मां को छोड़ दिया था। अब वह अपनी पहचान और हक के लिए कानूनी लड़ाई लड़ रहा है।

एक ऐसी कहानी जो दिल को झकझोर देती है, जहां एक बेटे को 25 साल बाद अपने पिता के जीवित होने का सच पता चला। यह कहानी गुजरात के उस नौजवान की है, जिसने अपनी मां के संघर्षों के बीच बिना पिता के साये के जीवन जिया, और अब अपने अस्तित्व और अधिकारों के लिए कानूनी जंग लड़ रहा है।
कहानी की शुरुआत: 1998 में सूरत की मुलाकात
साल 1998 में बाड़मेर का एक युवक रोजगार की तलाश में गुजरात से सूरत पहुंचा। वहां खेती-बाड़ी और मजदूरी करने । उसी दौरान उसकी मुलाकात एक शादीशुदा महिला से हुई, जो मवेशी चराने के लिए आया करती थी । दोनों के बीच पहले दोस्ती हुई, जो धीरे-धीरे गहरे रिश्ते में बदल गई। महिला ने अपने पति को छोड़कर इस युवक के साथ रहना शुरू कर दिया। साल 2000 में इस रिश्ते से एक बेटे का जन्म हुआ।
लेकिन खुशी का यह पल ज्यादा दिन नहीं टिका। अचानक वह युवक महिला और अपने नवजात बेटे को छोड़कर गायब हो गया। लोगों ने अफवाह उड़ाई कि वह मर चुका है। महिला, जो अब अकेली थी, ने हिम्मत नहीं हारी और अपने बेटे को पालने के लिए दिन-रात मेहनत की। बेटे ने मां के संघर्षों को देखते हुए बिना पिता के नाम और साये के अपनी जिंदगी बनाई।
25 साल बाद खुला राज: पिता है जिंदा
25 साल बाद, अब जब यह बेटा एक नौजवान बन चुका है, उसे एक ऐसा सच पता चला, जिसने उसकी दुनिया हिला दी। जिस पिता को वह मरा हुआ मानता था, वह न केवल जिंदा है, बल्कि बाड़मेर में ही रह रहा है। यह खुलासा उस युवक के लिए गहरा सदमा लेकर आया। उसने जाना कि उसके पिता ने जानबूझकर उसे और उसकी मां को छोड़ दिया था।
इस सच ने नौजवान के मन में सवालों का तूफान खड़ा कर दिया। जिस पिता को उसने कभी देखा तक नहीं, जिसका नाम सिर्फ एक कहानी बनकर रह गया था, वह जिंदा है और उसने कभी अपने बेटे की सुध नहीं ली।
हक की लड़ाई: पुलिस थाने से कोर्ट तक
अब यह नौजवान अपने हक और पहचान की लड़ाई लड़ रहा है। वह चाहता है कि उसका पिता कम से कम यह स्वीकार करे कि वह उसका बेटा है। इसके लिए वह अलग अलग जगह पर चक्कर काट रहा है और कानूनी प्रक्रियाओं में उलझा हुआ है। उसकी मांग साफ है: "जिसने मुझे जन्म दिया, वह मेरी पहचान को स्वीकार करे और अपनी जिम्मेदारी निभाए।"
कानूनी प्रक्रिया की जटिलताओं ने इस नौजवान के सामने कई चुनौतियां खड़ी कर दी हैं। वह अपनी मां के उस संघर्ष को भी याद करता है, जिसने उसे अकेले दम पर पाला-पोसा। इस लड़ाई में वह न केवल अपने लिए, बल्कि अपनी मां के सम्मान और उनके बलिदानों के लिए भी न्याय चाहता है।