तीन साल तक एक बंद कमरे में रहने वाले शख्स की कहानी , कचरे का ढेर बना फ्लैट, ऑर्डर कर मंगवाता था खाना
अगर आपको कहें कि आपको अपने कमरे के अंदर ही लगातार 10 घंटे तक रहना है बाहर बिल्कुल भी नहीं निकलना है। क्या आप 10 घंटे तक लगातार बाहरी दुनिया से बिना संपर्क किया एक कमरे में बंद रह सकते हैं शायद आपका उत्तर होगा हां! लेकिन वही अगर आपको यह कहा जाए कि आपको 10 महीने के लिए लगातार अपने कमरे में रहना है बिना किसी बाहरी दुनिया की बिना दखलबाजी आप अंदर ही रहेंगे आपके अंदर ही खाना है अंदर ही पीना है आप यहां तक की बार की हवा में भी नहीं जा सकेंगे । तो शायद आपका उत्तर रहेगा कि ना।
अगर आपको कहें कि आपको अपने कमरे के अंदर ही लगातार 10 घंटे तक रहना है बाहर बिल्कुल भी नहीं निकलना है। क्या आप 10 घंटे तक लगातार बाहरी दुनिया से बिना संपर्क किया एक कमरे में बंद रह सकते हैं शायद आपका उत्तर होगा हां!
लेकिन वही अगर आपको यह कहा जाए कि आपको 10 महीने के लिए लगातार अपने कमरे में रहना है बिना किसी बाहरी दुनिया की बिना दखलबाजी आप अंदर ही रहेंगे आपके अंदर ही खाना है अंदर ही पीना है आप यहां तक की बार की हवा में भी नहीं जा सकेंगे ।
तो शायद आपका उत्तर रहेगा कि ना। नवी मुंबई से एक मामला सामने आया है जहां पर पर 55 साल के एक शख़्स ने 3 साल से अधिक अपने कमरे के अंदर खुद को बंद रखा,यह शख्स हैं अनूप कुमार नायर । डिप्रेशन के शिकार अनूप नवी मुंबई के जुईनगर में अपने फ्लैट में रह रहे थे। 3 साल से अधिक समय से लगातार अनूप खुद को इस फ्लैट के अंदर बंद रखते थे बाहरी दुनिया से उनका संपर्क सिर्फ इतना था कि वह ऑनलाइन फूड डिलीवरी एप से खाना ऑर्डर करते थे।
इस दौरान वह ना तो बाहर जाते थे यहां तक की अपने रूम में फैले कचरे को भी बाहर वह नहीं फेंका करते थे। अनूप पहले कंप्यूटर प्रोग्रामर का काम किया करते थे। छ साल पहले अनूप के माता पिता की डेथ के बाद वो गहरे अवसाद का शिकार हुए और खुद को अपने ही फ्लैट में बंद कर लिया।अनूप की मां पूनम्मा नायर भारतीय वायु सेना (टेलीकम्युनिकेशन ब्रांच) में काम करती थीं। वहीं उनके पिता वीपी कुट्टी कृष्णन नायर टाटा हॉस्पिटल मुंबई में नौकरी करते थे।अनूप के पड़ोसी विजय शिबे घारकूल सीएचएस के अध्यक्ष भी हैं। उन्होंने बताया कि अनूप शायद ही कभी अपने फ्लैट का दरवाजा खोलते थे। वे अपना कचरा भी बाहर नहीं निकालते थे। ऐसे में सोसायटी के सदस्यों को उन्हें कचरा बाहर निकालने के लिए मनाना पड़ता था। उन्होंने अनूप को उनके माता-पिता की फिक्स्ड डिपॉजिट उनके खाते में ट्रांसफर करने में भी मदद की।ऐसा बताया जा रहा है कि अनूप के रिश्तेदारों ने भी कई बार उनसे संपर्क करने का प्रयास किया लेकिन अनूप किसी पर भरोसा नहीं करते हैं ऐसे में उन्होंने किसी से भी बातचीत नहीं की। इसके बाद अनूप के बारे में किसी ने एक एनजीओ सोशल एंड इवेंजेलिकल एसोसिएशन फॉर लव (SEAL) के समाजसेवकों ने यह बात बताई,SEAL के लोग अनूप के घर गए तो वो भी हैरान थे कि उनका कमरा नहीं वो एक कचरे का ढेर बन चुका था। टीम उनको पनवेल के रेस्क्यू सेंटर लेकर गई।
TOI की रिपोर्ट के मुताबिक- पनवेल के रेस्क्यू सेंटर में अनूप से बात की तो उन्होंने कहा कि मेरा अभी कोई दोस्त नहीं है। मेरे माता-पिता और भाई की पहले ही मौत हो चुकी है। मेरी सेहत खराब होने की वजह से मुझे कोई नई नौकरी नहीं मिल रही है। मासिना हॉस्पिटल की कंसल्टेंट साइकियाट्रिस्ट डॉ प्रियंका महाजन ने इस घटनाक्रम पर कमेंट किया है। उन्होंने कहा कि जब कोई व्यक्ति अपने किसी करीबी को खो देता है तो अकेलापन और भावनात्मक दुख होना स्वाभाविक है। कुछ लोगों के लिए यह दुख डिप्रेशन में बदल सकता है। डिप्रेशन में व्यक्ति हेल्पलेस, निराशा और बेकार महसूस करता है। जैसे-जैसे डिप्रेशन बढ़ता है। व्यक्ति सामाजिक रूप से दूर होने लगता है।