कांस्टेबल जितेंद्र कुंडारा ने पुलिस सेवा में अपमान और उत्पीड़न का आरोप लगाते हुए सौंपा इस्तीफा.

सिरोही जिले के कांस्टेबल जितेंद्र कुंडारा ने पुलिस सेवा में अपमान और उत्पीड़न का आरोप लगाते हुए एसपी को त्याग पत्र सौंपा। उन्होंने अपने पत्र में "पागल, अड़ियल, चटक" जैसे अपमानजनक शब्दों से संबोधन और स्वाभिमान को ठेस पहुंचने की बात कही। जितेंद्र ने कर्तव्यनिष्ठा से काम करने का दावा किया, लेकिन विभागीय नीतियों और हाल के तबादलों से नाराज होकर यूपीएससी की तैयारी के लिए नौकरी छोड़ने का फैसला लिया। यह घटना पुलिस विभाग में उत्पीड़न और मनोबल के मुद्दों को उजागर करती है।

Sep 9, 2025 - 08:51
Sep 9, 2025 - 08:52
कांस्टेबल जितेंद्र कुंडारा ने पुलिस सेवा में अपमान और उत्पीड़न का आरोप लगाते हुए सौंपा इस्तीफा.

सिरोही जिले के पुलिस महकमे में एक सनसनीखेज घटना ने सभी का ध्यान खींचा है, जहां कांस्टेबल जितेंद्र कुंडारा ने पुलिस अधीक्षक (एसपी) को अपना त्याग पत्र सौंपकर नौकरी छोड़ने की इच्छा जताई है। यह घटना सोमवार, 8 सितंबर 2025 को दोपहर करीब 1 बजे की है, जब जितेंद्र ने अपने त्याग पत्र में पुलिस सेवा में अपने साथ हुए अपमान और उत्पीड़न का मार्मिक वर्णन किया। इस पत्र ने न केवल सिरोही पुलिस विभाग में हलचल मचा दी है, बल्कि कार्यस्थल पर सम्मान और मनोबल जैसे गंभीर मुद्दों को भी उजागर किया है।

त्याग पत्र में क्या लिखा जितेंद्र ने?

जितेंद्र कुंडारा ने अपने पत्र में बेहद भावुक और स्पष्ट शब्दों में अपनी पीड़ा व्यक्त की। उन्होंने लिखा कि पुलिस सेवा में उनके स्वाभिमान को बार-बार ठेस पहुंचाई गई। उन्हें "पागल, अड़ियल और चटक" जैसे अपमानजनक शब्दों से संबोधित किया गया, जिसने उनकी अस्मिता को गहरी चोट पहुंचाई। जितेंद्र ने यह भी उल्लेख किया कि उन्होंने अपने कांस्टेबल के पद के अनुरूप हमेशा पूरी निष्ठा और लगन से काम किया और अपना सर्वस्व दिया, लेकिन बदले में उन्हें सम्मान के बजाय अपमान और तिरस्कार मिला।उन्होंने अपने पत्र में यह भी जिक्र किया कि पुलिस विभाग में एक कांस्टेबल का कोई वजूद नहीं है। इस निराशा और असंतोष के चलते, जितेंद्र ने पुलिस सेवा को छोड़ने का फैसला लिया और अब वे यूपीएससी (संघ लोक सेवा आयोग) की तैयारी करना चाहते हैं। उन्होंने एसपी से अपने त्याग पत्र को स्वीकार करने और उन्हें इस "बोझ" से मुक्ति दिलाने की भावनात्मक अपील की।

तबादला सूची से जुड़ा विवाद

सूत्रों के अनुसार, जितेंद्र का यह कदम हाल ही में जारी थानाधिकारियों की तबादला सूची से भी प्रेरित हो सकता है। इस सूची में अनादरा थानाधिकारी गीता सिंह का तबादला शामिल था, जिसे जितेंद्र ने राजनैतिक दबाव का परिणाम बताया। उन्होंने इस तबादले पर सवाल उठाते हुए पुलिस विभाग की कार्यप्रणाली और नीतियों की आलोचना की। जितेंद्र का मानना है कि सिरोही पुलिस में कुछ गलत नीतियां और पक्षपातपूर्ण रवैया उनके मनोबल को तोड़ने का कारण बना।

पुलिस विभाग में हलचल

जितेंद्र के त्याग पत्र ने सिरोही पुलिस विभाग में एक तूफान खड़ा कर दिया है। उनके पत्र में लगाए गए आरोपों ने पुलिस प्रशासन के भीतर उत्पीड़न, कार्यस्थल पर सम्मान की कमी और कनिष्ठ कर्मचारियों के प्रति उपेक्षापूर्ण रवैये जैसे गंभीर मुद्दों को सामने लाया है। यह पहली बार नहीं है जब पुलिस विभाग में इस तरह की शिकायतें सामने आई हैं, लेकिन जितेंद्र का खुलकर अपनी बात रखना और नौकरी छोड़ने का साहसिक कदम इस मामले को और गंभीर बनाता है।

क्या है पृष्ठभूमि?

हाल के वर्षों में, देश के विभिन्न हिस्सों में पुलिसकर्मियों द्वारा विभागीय उत्पीड़न, कार्यस्थल पर तनाव और सम्मान की कमी के कारण इस्तीफे देने की घटनाएं सामने आई हैं। सिरोही का यह मामला भी उसी कड़ी का हिस्सा प्रतीत होता है। कांस्टेबल जैसे निचले स्तर के कर्मचारी अक्सर उच्च अधिकारियों के दबाव और कार्यस्थल की चुनौतियों का सामना करते हैं, जिसका असर उनके मानसिक स्वास्थ्य और मनोबल पर पड़ता है। जितेंद्र का पत्र इन समस्याओं को स्पष्ट रूप से उजागर करता है और पुलिस विभाग में सुधार की आवश्यकता को रेखांकित करता है।

एसपी कार्यालय की प्रतिक्रिया

अभी तक यह स्पष्ट नहीं हो सका है कि सिरोही के पुलिस अधीक्षक ने जितेंद्र के त्याग पत्र पर क्या कार्रवाई की है। क्या उनका इस्तीफा स्वीकार किया जाएगा या उनके आरोपों की जांच के लिए कोई समिति गठित होगी, इस बारे में कोई आधिकारिक बयान सामने नहीं आया है। हालांकि, इस घटना ने स्थानीय स्तर पर खासी चर्चा बटोरी है और लोग इस मामले में पुलिस प्रशासन के अगले कदम का इंतजार कर रहे हैं।

क्या कहता है यह मामला?

जितेंद्र कुंडारा का त्याग पत्र केवल एक व्यक्तिगत निर्णय नहीं है, बल्कि यह पुलिस विभाग में व्याप्त व्यवस्थागत खामियों की ओर इशारा करता है। यह घटना इस बात की जरूरत को रेखांकित करती है कि पुलिसकर्मियों के मानसिक स्वास्थ्य, कार्यस्थल पर सम्मान और उनकी शिकायतों के निवारण के लिए ठोस कदम उठाए जाएं। साथ ही, यह सवाल भी उठता है कि क्या पुलिस विभाग अपने कर्मचारियों को वह सम्मान और समर्थन दे पा रहा है, जो उनकी मेहनत और समर्पण के लिए जरूरी है।यह मामला न केवल सिरोही, बल्कि पूरे देश में पुलिस सुधारों पर बहस को और तेज कर सकता है। जितेंद्र कुंडारा की कहानी उन तमाम पुलिसकर्मियों की आवाज बन सकती है, जो अपने स्वाभिमान और अस्मिता के लिए संघर्ष कर रहे हैं।