बयाना में NFSA सूची से पात्र ग्रामीणों के नाम हटे: सात महीनों से भटक रहे लोग, प्रशासन के खिलाफ नारेबाजी

भरतपुर के बयाना उपखंड के बागरैन गांव में NFSA सूची से सैकड़ों पात्र ग्रामीणों के नाम बिना सूचना हटाए जाने से रोष। सात महीने से भटक रहे लोगों ने सोमवार को गांव में प्रदर्शन कर नारेबाजी की और एसडीएम से तत्काल समाधान की मांग की।

Nov 24, 2025 - 17:53
बयाना में NFSA सूची से पात्र ग्रामीणों के नाम हटे: सात महीनों से भटक रहे लोग, प्रशासन के खिलाफ नारेबाजी

भरतपुर, 24 नवंबर 2025: राजस्थान के भरतपुर जिले के बयाना उपखंड क्षेत्र में राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा योजना (NFSA) की लाभार्थी सूची से पात्र ग्रामीणों के नाम अचानक हटाने का मामला तूल पकड़ रहा है। बागरैन गांव के सैकड़ों ग्रामीण पिछले सात महीनों से इस समस्या से जूझ रहे हैं, जिसके कारण उन्हें सस्ते अनाज और अन्य लाभों से वंचित होना पड़ रहा है। सोमवार को ग्रामीणों ने गांव में जोरदार प्रदर्शन किया और प्रशासन के खिलाफ नारेबाजी की। बाद में एक प्रतिनिधिमंडल बयाना पहुंचा, जहां उपखंड अधिकारी (एसडीएम) से मुलाकात कर तत्काल समाधान की मांग की। ग्रामीणों का कहना है कि यह कार्रवाई बिना किसी पूर्व सूचना या जांच के की गई है, जो उनकी आजीविका पर सीधा असर डाल रही है।

समस्या की शुरुआत और ग्रामीणों का दर्द;  बागरैन गांव, जो बयाना उपखंड का एक प्रमुख ग्रामीण इलाका है, यहां की अधिकांश आबादी कृषि और मजदूरी पर निर्भर है। राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा योजना के तहत ये ग्रामीण सस्ते दामों पर गेहूं, चावल और अन्य आवश्यक वस्तुओं का राशन प्राप्त करते थे। लेकिन अप्रैल 2025 से शुरू हुए इस विवाद ने उनकी जिंदगी को मुश्किल बना दिया। ग्रामीणों के अनुसार, सूची से नाम हटाने की प्रक्रिया में कोई पारदर्शिता नहीं बरती गई। न तो घर-घर जाकर सत्यापन किया गया, न ही कोई नोटिस जारी की गई। इसके चलते गरीब परिवारों को न केवल राशन से वंचित होना पड़ा, बल्कि कईयों को कर्ज लेकर महंगे बाजार से अनाज खरीदना पड़ रहा है।गांव के बुजुर्ग निवासी मोहन सिंह जादौन ने बताया, "हमारे परिवार में पांच सदस्य हैं और हम सब NFSA के तहत राशन कार्ड पर निर्भर थे। अचानक नाम हटने के बाद हम सात महीने से चक्कर काट रहे हैं। प्रशासन कहता है कि जांच होगी, लेकिन कोई कार्रवाई नहीं हो रही। यह अन्याय है।" इसी तरह, राजकुमार नामक एक युवा किसान ने अपनी व्यथा सुनाई, "मेरे पिता की उम्र 70 वर्ष है, वे बीमार रहते हैं। राशन न मिलने से दवाओं तक का इंतजाम मुश्किल हो गया है। हमने कई बार तहसील कार्यालय का चक्कर लगाया, लेकिन कोई सुनवाई नहीं।" समय सिंह और जलसिंह समिति जैसे अन्य ग्रामीणों ने भी यही बात दोहराई। उन्होंने आरोप लगाया कि सूची से नाम हटाने के पीछे कुछ स्थानीय प्रभावशाली लोगों का हाथ हो सकता है, जो योजना के लाभ को अपने करीबियों तक सीमित रखना चाहते हैं।ग्रामीणों के मुताबिक, बागरैन गांव में कुल 500 से अधिक परिवार NFSA के पात्र थे, जिनमें से करीब 150-200 परिवारों के नाम हटा दिए गए। इनमें ज्यादातर अनुसूचित जाति और अन्य पिछड़ा वर्ग के लोग शामिल हैं, जो आर्थिक रूप से सबसे कमजोर हैं। सात महीनों में ग्रामीणों ने न केवल आर्थिक नुकसान झेला, बल्कि मानसिक तनाव भी बढ़ा। कई परिवारों ने बताया कि बच्चों की पढ़ाई और महिलाओं के स्वास्थ्य पर भी बुरा असर पड़ा है।

सोमवार का प्रदर्शन: नारों से गूंजा गांव सोमवार सुबह बागरैन गांव में सैकड़ों ग्रामीण इकट्ठा हुए। वे गांव के मुख्य चौक पर पहुंचे और ट्रैक्टर-ट्रॉली तथा डंडों के साथ प्रशासन के खिलाफ नारेबाजी शुरू कर दी। नारे लगाए गए- "एनएफएसए सूची बहाल करो, गरीबों का राशन लौटाओ!", "प्रशासन जागो, अन्याय बंद करो!"। महिलाओं और बच्चों की भीड़ भी प्रदर्शन में शामिल हुई, जो तख्तियों पर अपनी मांगें लिखकर लहरा रही थीं। प्रदर्शन करीब दो घंटे चला, जिस दौरान ग्रामीणों ने गांव के सरपंच और पटवारी को भी घेर लिया। सरपंच ने आश्वासन दिया कि वे उच्च अधिकारियों से बात करेंगे, लेकिन ग्रामीण संतुष्ट नहीं हुए।प्रदर्शन के बाद, मोहन सिंह जादौन, राजकुमार, समय सिंह, जलसिंह समिति सहित 20 सदस्यीय प्रतिनिधिमंडल बयाना उपखंड कार्यालय पहुंचा। वहां उपखंड अधिकारी डॉ. रामस्वरूप मीणा से मुलाकात की गई। प्रतिनिधिमंडल ने एक ज्ञापन सौंपा, जिसमें मांग की गई कि नामों की तत्काल बहाली हो, सत्यापन प्रक्रिया पारदर्शी बने और दोषी अधिकारियों पर कार्रवाई हो। एसडीएम ने ग्रामीणों को आश्वस्त किया कि मामले की जांच कराई जाएगी और 15 दिनों के अंदर समाधान निकाला जाएगा। हालांकि, ग्रामीणों ने इस पर भरोसा जताने से इनकार कर दिया, क्योंकि पिछले सात महीनों में कई बार ऐसे वादे किए गए थे।

प्रशासन का पक्ष: जांच का बहाना या वास्तविक समस्या? प्रशासनिक पक्ष से मिली जानकारी के अनुसार, NFSA सूची का संशोधन केंद्र सरकार के दिशा-निर्देशों के तहत किया गया था। बयाना उपखंड के एक अधिकारी ने बताया कि आधार कार्ड लिंकिंग और आय सत्यापन के आधार पर कुछ नाम हटाए गए, क्योंकि कई लाभार्थी अब पात्रता मानदंडों पर खरे नहीं उतरते। लेकिन ग्रामीणों का कहना है कि यह प्रक्रिया मनमानी थी। जिला खाद्य एवं नागरिक आपूर्ति विभाग के एक वरिष्ठ अधिकारी ने फोन पर पुष्टि की कि बागरैन जैसे गांवों में शिकायतें मिल रही हैं और जल्द ही विशेष सत्यापन अभियान चलाया जाएगा। इसके अलावा, भरतपुर जिला कलेक्टर ने भी सोमवार को इस मुद्दे पर संज्ञान लिया है।यह घटना राजस्थान के ग्रामीण इलाकों में NFSA जैसी कल्याणकारी योजनाओं की क्रियान्वयन में आने वाली खामियों को उजागर करती है। विशेषज्ञों का मानना है कि डिजिटल सत्यापन के नाम पर गरीबों को निशाना बनाया जा रहा है, जबकि वास्तविक अपराधी बचे हुए हैं। ग्रामीणों ने चेतावनी दी है कि यदि 10 दिनों के अंदर समस्या हल न हुई, तो वे जिला मुख्यालय तक मार्च निकालेंगे।