10 मिनट देर से आई तो 100 उठक-बैठक की सजा... 13 साल की अंशिका की मौत!
महाराष्ट्र के वसई में 13 साल की छात्रा अंशिका गौड़ की मौत 10 मिनट देरी से स्कूल पहुंचने पर शिक्षिका द्वारा दी गई 100 उठक-बैठक की सजा से हुई। अवैध रूप से चल रहे श्री हनुमंत विद्या मंदिर हाई स्कूल में घटना के बाद मनसे ने ताला जड़ा, परिवार ने न्याय मांगा। स्कूल ने शिक्षिका को निकाला और कुपोषण का दावा किया, जिसे परिवार ने खारिज किया। जांच चल रही है, पोस्टमॉर्टम रिपोर्ट का इंतजार।
वसई, महाराष्ट्र (16 नवंबर 2025): महाराष्ट्र के वसई इलाके से निकला एक ऐसा दर्दनाक हादसा जो न सिर्फ स्थानीय स्तर पर बल्कि पूरे देश को झकझोर कर रख दिया है। 13 साल की मासूम छात्रा अंशिका गौड़, जो श्री हनुमंत विद्या मंदिर हाई स्कूल की छठी कक्षा में पढ़ती थी, सिर्फ 10 मिनट की देरी से स्कूल पहुंचने की सजा में शिक्षिका द्वारा दी गई क्रूर सजा की चपेट में आ गई। डर के मारे उसने बैग लादे 100 उठक-बैठक कर लीं, जिसके बाद उसकी हालत बिगड़ती चली गई और मुंबई के सर जेजे अस्पताल में इलाज के दौरान 14 नवंबर को उसका निधन हो गया। विडंबना ये कि ये घटना बाल दिवस के ठीक बाद हुई, जब बच्चे खुशियां मना रहे थे, वहीं अंशिका का परिवार आंसुओं में डूब गया।
घटना का पूरा विवरण: कैसे बदली एक सामान्य सुबह काल में?
8 नवंबर 2025 को सुबह करीब 10 मिनट की देरी से स्कूल पहुंचीं अंशिका और चार अन्य छात्राओं को शिक्षिका ममता यादव ने कठोर सजा सुनाई। रिपोर्ट्स के मुताबिक, छात्राओं को बैग पीठ पर लादे 100 उठक-बैठक करने का आदेश दिया गया। डर के कारण अंशिका ने पूरी सजा पूरी कर ली, लेकिन इसके तुरंत बाद उसे कमर और गर्दन में तेज दर्द होने लगा। घर लौटते ही वह थकान से सो गई, लेकिन शाम होते-होते सांस लेने में तकलीफ बढ़ गई। परिवार ने सबसे पहले वसई के एक स्थानीय अस्पताल में भर्ती कराया, लेकिन हालत सुधरने के बजाय बिगड़ती गई। डॉक्टरों ने उसे मुंबई के सर जेजे अस्पताल रेफर कर दिया, जहां 14 नवंबर की रात को उसका निधन हो गया।
अंशिका की मां ने घटना के बाद मीडिया से बातचीत में आंसुओं के बीच गुस्सा जाहिर किया। उन्होंने कहा, "मैंने शिक्षिका से कहा था कि सजा का मतलब बच्चों को बैग लादकर उठक-बैठक लगाना नहीं होता। ये अमानवीय सजा थी, जिसने मेरी बेटी की जान ले ली।" मां ने ये भी बताया कि शिक्षिका ने सजा को जायज ठहराते हुए कहा कि माता-पिता फीस देने के बाद भी बच्चों को पढ़ाने का आरोप लगाते हैं, इसलिए अनुशासन जरूरी है। अंशिका पूरी तरह स्वस्थ थी और कुपोषित होने जैसी कोई समस्या नहीं थी। उन्होंने स्कूल प्रबंधन के इन आरोपों को सिरे से खारिज कर दिया है।
स्कूल पर सवालों की बौछार: बिना मान्यता का 'अवैध' संस्थान?
चौंकाने वाली बात ये सामने आई कि श्री हनुमंत विद्या मंदिर हाई स्कूल वसई-विरार सिटी म्यूनिसिपल कॉर्पोरेशन (वीवीसीएमसी) की अनुमति के बिना चल रहा था। स्थानीय कार्यकर्ताओं के अनुसार, स्कूल के प्रवेश द्वार पर ही एक बोर्ड लगा था जिसमें साफ लिखा था कि यह भवन शैक्षणिक संस्थान के रूप में संचालित करने की अनुमति नहीं रखता इतना ही नहीं, स्कूल को आठवीं कक्षा तक ही अनुमति थी, लेकिन यह नौवीं और दसवीं के छात्रों को भी पढ़ा रहा था। शिक्षा विभाग ने इसकी शिकायत मिलने पर प्रारंभिक जांच शुरू कर दी है।स्कूल प्रबंधन ने सफाई देते हुए कहा कि शिक्षिका ममता यादव को नौकरी से निकाल दिया गया है। उनका दावा है कि अंशिका ने कितनी उठक-बैठक कीं, ये स्पष्ट नहीं है और मौत का कारण सजा से जुड़ा हो या न हो, ये पोस्टमॉर्टम रिपोर्ट ही बता पाएगी। हालांकि, परिवार और स्थानीय लोगों ने इसे साजिश करार देते हुए सख्त कार्रवाई की मांग की है।
आक्रोश की लहर: मनसे का ताला, विरोध प्रदर्शन और राजनीतिक बयान
बाजीअंशिका की मौत की खबर फैलते ही इलाके में गुस्सा भड़क उठा। महाराष्ट्र नवनिर्माण सेना (मनसे) के कार्यकर्ताओं ने 15 नवंबर को स्कूल पर ताला जड़ दिया और प्रबंधन के खिलाफ सड़क पर उतर आए। मनसे नेता सचिन मोरे ने कहा, "स्कूल को अंशिका की पूर्व स्वास्थ्य समस्याओं का पता था, फिर भी ऐसी क्रूर सजा दी गई। ये हत्या के समान है।" मनसे युवा सेना (एमएनवीएस) ने भी परिवार से मुलाकात की और न्याय का भरोसा दिलाया।स्थानीय लोगों और अभिभावकों ने स्कूल के बाहर प्रदर्शन किया, जिसमें नारे लगाए गए- "बाल सताह के नाम पर हत्या बंद करो!" पुलिस ने एक्सीडेंटल डेथ रिपोर्ट दर्ज की है, लेकिन अब तक कोई औपचारिक एफआईआर नहीं हुई है। सोशल मीडिया पर भी #JusticeForAnshikaGaud और #BanCorporalPunishment जैसे हैशटैग ट्रेंड कर रहे हैं, जहां लोग स्कूलों में शारीरिक सजा पर सवाल उठा रहे हैं। एक यूजर ने लिखा, "ये सजा नहीं, क्रूरता है। अगर अब जिम्मेदारी नहीं ली गई, तो फिर से ऐसा होगा।"
जांच का दौर: शिक्षा विभाग ने तोड़ा चुप्पी
पालघर जिला शिक्षा अधिकारी सोनाली मेटेकर ने घटना को "बहुत दुखद" बताते हुए कहा कि प्रारंभिक जांच में पुष्टि हुई है कि 8 नवंबर को देरी के लिए छात्राओं को उठक-बैठक की सजा दी गई थी उन्होंने बताया कि स्कूल शिक्षा विभाग को रिपोर्ट सौंपी गई है और एक विस्तृत जांच समिति गठित की जा रही है। "शारीरिक सजा कानूनन निषिद्ध है। स्कूलों और शिक्षकों को बार-बार इसकी जानकारी दी जाती है। जांच के बाद सख्त कार्रवाई होगी," मेटेकर ने जोर देकर कहा।ब्लॉक शिक्षा अधिकारी पांडुरंग गलांगे ने भी पुष्टि की कि मौत के सटीक कारण की जांच चल रही है। "पोस्टमॉर्टम रिपोर्ट आने पर ही स्पष्ट होगा कि सजा इसका कारण बनी या नहीं," उन्होंने कहा। शिक्षा विभाग ने स्कूल को सोमवार (17 नवंबर) को खुला रखने और जांच में सहयोग करने का निर्देश दिया है।
व्यापक प्रभाव: शारीरिक सजा पर सवाल, सुधार की मांग
ये घटना महाराष्ट्र ही नहीं, पूरे देश में शारीरिक सजा (कॉर्पोरल पनिशमेंट) के खिलाफ बहस छेड़ रही है। 2009 के राइट टू एजुकेशन एक्ट के तहत स्कूलों में ऐसी सजाएं पूरी तरह प्रतिबंधित हैं, लेकिन अमल में कमी के कारण ऐसी घटनाएं बार-बार हो रही हैं। विशेषज्ञों का कहना है कि ये न सिर्फ बच्चों की सेहत पर असर डालती हैं, बल्कि मानसिक आघात भी पहुंचाती हैं।अंशिका का परिवार न्याय की गुहार लगा रहा है। मां ने कहा, "मेरी बेटी सपनों की उड़ान भर रही थी, लेकिन एक शिक्षिका की क्रूरता ने उसे हमेशा के लिए छीन लिया। हमें इंसाफ चाहिए।" ये मामला न सिर्फ एक परिवार का दर्द है, बल्कि पूरे समाज के लिए चेतावनी है- क्या हम अपने बच्चों को स्कूल भेजकर सुरक्षित रख पा रहे हैं? जांच के नतीजे जल्द आने चाहिए, ताकि दोषियों को सजा मिले और ऐसी त्रासदी दोबारा न हो।