बाड़मेर जिले में सरकारी इंग्लिश मीडियम स्कूल की बदहाली: एक ही हॉल में 4 कक्षाएं, बच्चों का भविष्य खतरे में
बाड़मेर के कुंभार और मुस्लिम भवन में एक ही हॉल में 4 सरकारी इंग्लिश मीडियम कक्षाएं चल रही हैं, जिससे पढ़ाई बुरी तरह प्रभावित हो रही है। शिक्षिका ने जमीन आवंटन की मांग की है ताकि बच्चों का भविष्य सुरक्षित हो।
बाड़मेर, 3 नवंबर 2025: राजस्थान के रेगिस्तानी जिले बाड़मेर में शिक्षा व्यवस्था की पोल खोलने वाला एक मार्मिक मामला सामने आया है। यहां एक सरकारी इंग्लिश मीडियम स्कूल की चारों कक्षाएं एक ही सामुदायिक हॉल में संचालित हो रही हैं, जिससे बच्चों की पढ़ाई बुरी तरह प्रभावित हो रही है। मामला कुंभार और मुस्लिम भवन का है, जहां सीमित संसाधनों के कारण शिक्षण प्रक्रिया लगभग असंभव हो चुकी है। एक वीडियो संदेश के माध्यम से स्कूल की एक महिला शिक्षिका ने इस समस्या को उठाया है और प्रशासन से तत्काल हस्तक्षेप की गुहार लगाई है। यह घटना न केवल स्थानीय स्तर पर चिंता का विषय बनी हुई है, बल्कि पूरे राज्य की सरकारी शिक्षा प्रणाली की कमियों को उजागर कर रही है।
स्कूल का इतिहास और वर्तमान संकट; स्कूल की शिक्षिका ने बताया कि यह संस्थान पहले गेहूं रोड पर स्थित था। वहां का किराये का एग्रीमेंट समाप्त हो जाने के बाद स्कूल को खाली करवा दिया गया। इसके बाद प्रशासन ने इसे कुंभार और मुस्लिम भवन नामक सामुदायिक हॉल में स्थानांतरित कर दिया। शुरुआत में यहां पढ़ाई सुचारू रूप से चली, लेकिन जल्द ही समस्याओं का अंबार लग गया। मुख्य समस्या: चारों कक्षाओं (संभवतः कक्षा 1 से 4 या 5 तक) को एक ही हॉल में समायोजित करना पड़ रहा है। इससे शोर-शराबा, एक-दूसरे की पढ़ाई में बाधा और एकाग्रता की कमी जैसी दिक्कतें पैदा हो रही हैं। शिक्षिका ने कहा, "बच्चों की सारी क्लास एक ही भवन में लगती है, इसलिए सही से पढ़ाई नहीं हो पाती।"
अन्य चुनौतियां: सामुदायिक हॉल होने के कारण उचित फर्नीचर, ब्लैकबोर्ड, वेंटिलेशन या प्राइवेसी की कमी है। गर्मी के मौसम में रेगिस्तानी इलाके की तपिश और सर्दियों में ठंड अतिरिक्त परेशानी पैदा करती है। इसके अलावा, स्कूल के लिए अलग भवन या जमीन का अभाव है, जो बच्चों के स्वास्थ्य और शिक्षा दोनों को प्रभावित कर रहा है।
यह स्थिति राजस्थान के अन्य हिस्सों में भी सरकारी स्कूलों की समान समस्याओं की याद दिलाती है। उदाहरण के लिए, जैसलमेर के मोहनगढ़ में एक स्कूल पिछले 20 वर्षों से कच्ची झोपड़ियों में चल रहा है, जहां दो जर्जर कमरों में ही कक्षाएं संचालित होती हैं। इसी तरह, छत्तीसगढ़ के बालोद जिले के बोहारडीह प्राथमिक स्कूल में दो कमरों में पांच कक्षाएं चल रही हैं, और बारां जिले के बालापुरा डांग स्कूल में एक कमरे में आठ कक्षाएं संचालित हो रही हैं। ये उदाहरण दर्शाते हैं कि ग्रामीण और अर्ध-शहरी क्षेत्रों में इंग्लिश मीडियम स्कूलों की महत्वाकांक्षा के बावजूद बुनियादी सुविधाओं की कमी बनी हुई है।बच्चों पर प्रभाव: भविष्य दांव परबाड़मेर जैसे दूरस्थ जिले में इंग्लिश मीडियम स्कूल गरीब और अल्पसंख्यक समुदाय के बच्चों के लिए एक उम्मीद की किरण है। राज्य सरकार ने महात्मा गांधी की 150वीं जयंती पर हर जिला मुख्यालय में ऐसे स्कूल खोलने का निर्णय लिया था, लेकिन व्यवहारिक चुनौतियां इसे बाधित कर रही हैं।
शिक्षा की गुणवत्ता: एक ही हॉल में बहु-कक्षाओं के कारण बच्चे ठीक से सुन नहीं पाते, जिससे अवधारणाएं स्पष्ट नहीं होतीं। इंग्लिश मीडियम होने के बावजूद भाषा सीखने में बाधा आ रही है।
नामांकन पर असर: अभिभावक निजी स्कूलों की ओर रुख कर रहे हैं, क्योंकि सरकारी स्कूल की स्थिति देखकर विश्वास कम हो रहा है। इससे सरकारी प्रयासों पर पानी फिर रहा है।
स्वास्थ्य जोखिम: भीड़भाड़ से संक्रामक बीमारियों का खतरा बढ़ जाता है, खासकर कोविड जैसी महामारी के बाद।
शिक्षिका ने भावुक होकर कहा, "बच्चों के भविष्य को सुनहरा बनाने के लिए प्रशासन से अपील है कि स्कूल के लिए जल्द से जल्द जमीन को पारित करवाएं।"
प्रशासन की भूमिका और अपेक्षाएं; बाड़मेर जिला प्रशासन और शिक्षा विभाग को इस मामले में त्वरित कार्रवाई करनी होगी। राज्य स्तर पर इंग्लिश मीडियम स्कूलों को बढ़ावा देने के सरकारी दावों के बीच स्थानीय स्तर पर संसाधनों की कमी एक बड़ा विरोधाभास है।स्थानीय सामाजिक कार्यकर्ता और अभिभावक इस मुद्दे को सोशल मीडिया पर उठा रहे हैं। फेसबुक वीडियो को साझा कर हजारों लोग समर्थन जता रहे हैं, और कई ने शिक्षा मंत्री को टैग किया है। यदि प्रशासन ने जल्द हस्तक्षेप नहीं किया, तो यह मामला बड़े आंदोलन का रूप ले सकता है।
निष्कर्ष: शिक्षा का अधिकार सुनिश्चित करें
यह घटना दर्शाती है कि सरकारी योजनाओं का क्रियान्वयन जमीनी स्तर पर कितना चुनौतीपूर्ण है। बाड़मेर के इन मासूम बच्चों का भविष्य सिर्फ एक हॉल की चारदीवारी तक सीमित नहीं होना चाहिए। प्रशासन से अपेक्षा है कि वह न केवल इस स्कूल को नया भवन दे, बल्कि पूरे जिले में ऐसी समस्याओं का समग्र समाधान निकाले।