बाड़मेर में अक्षय तृतीया की अनूठी परंपरा: कुल्हड़-ऊन और मक्खी से देखा बारिश व अनाज भाव का शगुन

बाड़मेर जिले में अक्षय तृतीया के अवसर पर अनाज मंडी के व्यापारियों ने 41 साल पुरानी परंपरा को निभाते हुए बारिश और अनाज के भाव का शगुन देखा। इस अनूठी परंपरा में मिट्टी के कुल्हड़, काली-सफेद ऊन और मक्खी के जरिए भविष्यवाणी की गई।

Apr 30, 2025 - 14:13
बाड़मेर में अक्षय तृतीया की अनूठी परंपरा: कुल्हड़-ऊन और मक्खी से देखा बारिश व अनाज भाव का शगुन

रिपोर्ट जसवंत सिंह शिवकर - बाड़मेर, 30 अप्रैल 2025: राजस्थान के बाड़मेर जिले में अक्षय तृतीया के अवसर पर अनाज मंडी के व्यापारियों ने 41 साल पुरानी परंपरा को निभाते हुए बारिश और अनाज के भाव का शगुन देखा। इस अनूठी परंपरा में मिट्टी के कुल्हड़, काली-सफेद ऊन और मक्खी के जरिए भविष्यवाणी की गई। अनाज व्यापार संघ के अध्यक्ष हंसराज कोटड़िया ने बताया कि इस बार अच्छी बारिश का अनुमान लगाया गया है, जबकि अनाज के भाव में तरबूज (मतीरा) 250 रुपए प्रति किलो और बाजरा 27 रुपए प्रति किलो रहा। यह परंपरा 75% तक सटीक मानी जाती है और पिछले चार दशकों से चली आ रही है। 

शगुन देखने की तीन रोचक विधियां

अनाज व्यापार संघ के अध्यक्ष हंसराज कोटड़िया ने बताया कि हर साल की तरह इस बार भी अनाज मंडी में बारिश और अनाज के भाव का शगुन देखने के लिए तीन पारंपरिक तरीकों का उपयोग किया गया। ये तरीके न केवल रोचक हैं, बल्कि स्थानीय व्यापारियों के लिए महत्वपूर्ण भी हैं।

1. मिट्टी के कुल्हड़ से बारिश का अनुमान

पहले तरीके में व्यापारियों ने एक परात में पांच मिट्टी के कुल्हड़ रखे और प्रत्येक में बराबर पानी भरा। इन कुल्हड़ों के नाम ज्येष्ठ, आषाढ़, सावन, भादों और पांचवें को 'थम' रखा गया। शगुन के दौरान ज्येष्ठ और आषाढ़ माह के कुल्हड़ एक साथ फूटे, जिससे इन दोनों महीनों में अच्छी बारिश का अनुमान लगाया गया। इसके बाद 'थम' कुल्हड़ फूटा, जिसका मतलब है कि हर माह हल्की या तेज बारिश हो सकती है।

2. काली-सफेद ऊन से वर्षा की भविष्यवाणी

दूसरे तरीके में एक बर्तन में पानी भरा गया और उसमें दो प्रकार की ऊन—एक सफेद और एक काली—रखी गई। परंपरा के अनुसार, यदि सफेद ऊन पहले डूबे तो अच्छी बारिश के आसार माने जाते हैं, और यदि काली ऊन पहले डूबे तो अकाल की आशंका रहती है। इस बार सफेद ऊन पहले डूबी, जिससे व्यापारियों ने अच्छी बारिश का अनुमान लगाया।

3. मक्खी के जरिए अनाज के भाव का निर्धारण

तीसरे और सबसे रोचक तरीके में अनाज के भाव तय किए गए। बाड़मेर में मुख्य रूप से मूंग, मोठ, ग्वार, मतीरा (तरबूज) और बाजरा की पैदावार होती है। व्यापारियों ने इन पांच अनाजों के अलग-अलग ढेर बनाए और प्रत्येक ढेर पर गुड़ रखा। इसके बाद व्यापारियों ने अपने-अपने अनुमान के अनुसार कागज पर भाव लिखे। जिस ढेर पर मक्खी पहले बैठी, उसी भाव को अंतिम माना गया। इस बार तय हुए भाव इस प्रकार हैं:

मूंग: 80 रुपए प्रति किलो

मोठ: 55 रुपए प्रति किलो

तिल: 85 रुपए प्रति किलो

ग्वार: 50 रुपए प्रति किलो

मतीरा (तरबूज): 250 रुपए प्रति किलो

बाजरा: 27 रुपए प्रति किलो

परंपरा की सटीकता और महत्व

हंसराज कोटड़िया ने बताया कि यह परंपरा न केवल बाड़मेर की सांस्कृतिक धरोहर है, बल्कि व्यापारियों के लिए भी महत्वपूर्ण मार्गदर्शक है। पिछले 41 वर्षों से चली आ रही इस परंपरा के अनुमान 75% तक सटीक साबित हुए हैं। यह न केवल बारिश की भविष्यवाणी करता है, बल्कि अनाज के भाव तय करने में भी मदद करता है, जिससे किसानों और व्यापारियों को अपनी रणनीति बनाने में सहायता मिलती है। 

Ashok Shera "द खटक" एडिटर-इन-चीफ