मनिहारी प्रकरण, रविंद्र सिंह भाटी और प्रशासन में बनी सहमति,शामिल अधिकारियों पर जांच का आश्वाशन,धरना समाप्त

बाड़मेर के मणिहारी गांव में सोलर हब के नाम पर ग्रामीणों की जमीन पर बिना उचित मुआवजा दिए हाईटेंशन लाइन के पोल लगाने का विवाद गहराया। ग्रामीणों के विरोध और एक मां-बच्ची की हिरासत के बाद विधायक रविंद्र सिंह भाटी ने शिव थाने के बाहर धरना दिया। भाटी और SHO मनीष देव के बीच नोकझोंक हुई। 8 घंटे की वार्ता के बाद प्रशासन ने जांच का आश्वासन दिया, जिसके बाद धरना समाप्त हुआ। यह घटना सौर ऊर्जा परियोजनाओं के नाम पर जमीन हड़पने और प्रशासन-कंपनी गठजोड़ के खिलाफ जनता के संघर्ष को दर्शाती है।

May 18, 2025 - 11:31
मनिहारी प्रकरण, रविंद्र सिंह भाटी और प्रशासन में बनी सहमति,शामिल अधिकारियों पर जांच का आश्वाशन,धरना समाप्त

राजस्थान के बाड़मेर जिले के मणिहारी गांव में हाईटेंशन बिजली टावरों को लेकर उपजा विवाद एक बड़े जनांदोलन का रूप ले चुका था, जिसने स्थानीय प्रशासन और ग्रामीणों के बीच तनाव को चरम पर पहुंचा दिया। इस प्रकरण में शिव विधानसभा क्षेत्र से निर्दलीय विधायक रविंद्र सिंह भाटी ने ग्रामीणों के साथ कंधे से कंधा मिलाकर उनकी आवाज बुलंद की। यह घटना 17 मई 2025 को तब शुरू हुई, जब मणिहारी गांव में हाईटेंशन तारों और टावरों की स्थापना को लेकर ग्रामीणों ने विरोध जताया। उनका आरोप था कि निजी कंपनियां और प्रशासन आपसी सांठगांठ करके उनकी जमीन पर जबरन निर्माण कर रहे हैं, जिससे उनकी आजीविका और पर्यावरण को नुकसान पहुंच रहा है।

विवाद तब और गहरा गया, जब पुलिस ने विरोध कर रहे ग्रामीणों पर बल प्रयोग किया और एक महिला सहित कुछ लोगों को हिरासत में ले लिया। इस कार्रवाई ने ग्रामीणों में आक्रोश की आग भड़का दी। खबर फैलते ही रविंद्र सिंह भाटी, जो अपनी जनहितैषी छवि और बेबाक अंदाज के लिए जाने जाते हैं, तुरंत मणिहारी पहुंचे। उन्होंने ग्रामीणों के साथ शिव थाने के बाहर धरना शुरू कर दिया और प्रशासन पर गंभीर आरोप लगाए। भाटी ने कहा कि यह कार्रवाई पूरी तरह जनविरोधी है और निजी कंपनियों के हितों को बढ़ावा देने के लिए ग्रामीणों का दमन किया जा रहा है। उनकी मांग थी कि हिरासत में लिए गए ग्रामीणों को तुरंत रिहा किया जाए, दोषी अधिकारियों पर कार्रवाई हो और भविष्य में ऐसी घटनाओं की पुनरावृत्ति रोकने के लिए ठोस कदम उठाए जाएं।

धरना शुरू होने के बाद माहौल और गर्म हो गया। भाटी के समर्थक और स्थानीय लोग बड़ी संख्या में थाने के बाहर जुटने लगे। भाटी के समर्थकों ने इसे अन्याय के खिलाफ एकजुटता का प्रतीक बताया, जबकि कुछ लोगों ने उनकी इस सक्रियता को सियासी रंग देने की कोशिश की। इस बीच, प्रशासन पर दबाव बढ़ता गया। भाटी ने रविवार को थाने का बड़े पैमाने पर घेराव करने का ऐलान कर दिया, जिससे माहौल और तनावपूर्ण हो गया।

लगभग 8 घंटे तक चले इस धरने के दौरान प्रशासन और ग्रामीणों के बीच कई दौर की वार्ता हुई। देर रात तक चली इन चर्चाओं में जिला प्रशासन ने आखिरकार झुकते हुए भाटी और ग्रामीणों की प्रमुख मांगें मान लीं। सहमति बनी कि हिरासत में लिए गए ग्रामीणों को रिहा किया जाएगा और घटना में शामिल पुलिस अधिकारियों के खिलाफ जांच शुरू की जाएगी। प्रशासन ने यह भी आश्वासन दिया कि भविष्य में ऐसी घटनाओं को रोकने के लिए उचित कदम उठाए जाएंगे और ग्रामीणों की शिकायतों का निष्पक्ष समाधान किया जाएगा। इसके बाद, रविंद्र सिंह भाटी ने ग्रामीणों के साथ मिलकर धरना समाप्त करने की घोषणा की।

 राजस्थान की राजनीति में अपनी अलग पहचान बनाने वाले भाटी ने इस प्रकरण में अपनी नेतृत्व क्षमता और जनता के प्रति समर्पण को साबित किया। इससे पहले भी वे बाड़मेर जेल में कैदी की मौत, सौर ऊर्जा परियोजनाओं में अनियमितताओं और स्थानीय मुद्दों को लेकर प्रशासन के खिलाफ मुखर रहे हैं। मणिहारी प्रकरण में उनकी सक्रियता ने न केवल ग्रामीणों को न्याय दिलाने में मदद की, बल्कि यह भी दिखाया कि वे जनता की आवाज को बुलंद करने में कोई कसर नहीं छोड़ते।

यह विवाद केवल मणिहारी गांव तक सीमित नहीं है। पश्चिमी राजस्थान में सौर ऊर्जा परियोजनाओं के नाम पर ओरण और गोचर भूमि पर कब्जे का मुद्दा लंबे समय से गर्माया हुआ है। भाटी ने पहले भी जैसलमेर के बईया गांव में अडाणी सोलर कंपनी के खिलाफ ग्रामीणों के साथ धरना दिया था, जहां उन्होंने ओरण भूमि को सरकारी रिकॉर्ड में दर्ज करने की मांग उठाई थी।

हालांकि, इस घटना ने कुछ सवाल भी खड़े किए। कुछ लोग भाटी की इस सक्रियता को सियासी स्टंट मान रहे हैं, क्योंकि वे अक्सर भजनलाल शर्मा सरकार के खिलाफ मुखर रहते हैं। दूसरी ओर, उनके समर्थकों का कहना है कि भाटी का यह कदम उनकी जनसेवा की भावना को दर्शाता है। इस प्रकरण के बाद यह चर्चा भी तेज हो गई है कि क्या भाटी भविष्य में और बड़ी सियासी भूमिका निभाने की तैयारी में हैं।

मणिहारी प्रकरण अब भले ही शांत हो गया हो, लेकिन इसने स्थानीय प्रशासन, निजी कंपनियों और ग्रामीणों के बीच संबंधों पर गहरे सवाल उठाए हैं। साथ ही, यह घटना रविंद्र सिंह भाटी की उस छवि को और मजबूत करती है, जिसमें वे एक युवा, ऊर्जावान और जनता के लिए लड़ने वाले नेता के रूप में उभर रहे हैं।

Ashok Shera "द खटक" एडिटर-इन-चीफ