जयपुर: सदर थाने में मनीष पांडे की आत्महत्या मामले में 6 पुलिसकर्मियों पर कार्रवाई, जांच के लिए उठे कई सवाल
जयपुर के सदर थाने में मनीष पांडे की हिरासत में आत्महत्या के बाद SHO सहित 6 पुलिसकर्मियों को लाइन हाजिर किया गया। मामले की विभागीय जांच एसीपी चौमू और न्यायिक जांच मजिस्ट्रेट करेंगे। अवैध हिरासत और सीसीटीवी फुटेज पर सवाल उठ रहे हैं।

जयपुर के सदर थाने में हिरासत के दौरान 28 वर्षीय मनीष पांडे की आत्महत्या के मामले ने पुलिस प्रशासन को कटघरे में खड़ा कर दिया है। इस घटना के बाद जयपुर पुलिस कमिश्नर के निर्देश पर कड़ी कार्रवाई करते हुए थानाधिकारी (SHO) देवेंद्र प्रताप, सब इंस्पेक्टर मुकेश, सब इंस्पेक्टर निरमा पूनिया, हेड कांस्टेबल सुभाष, कांस्टेबल नरेश और कांस्टेबल दिलीप को डीसीपी वेस्ट अमित कुमार बुडानिया ने लाइन हाजिर कर दिया है। मामले की विभागीय जांच एसीपी चौमू को सौंपी गई है, जबकि न्यायिक मजिस्ट्रेट द्वारा विस्तृत जांच की जाएगी।
मनीष पांडे को कथित तौर पर बाइक चोरी के आरोप में शुक्रवार रात स्थानीय लोगों ने पकड़कर पुलिस के हवाले किया था। बताया जा रहा है कि मनीष नशे का आदी था और नशे की हालत में था, जब उसे थाने लाया गया। शनिवार सुबह उसका शव जेल में फंदे से लटका मिला, जिसके बाद पुलिस ने उसे नीचे उतारा, लेकिन तब तक उसकी मौत हो चुकी थी।
पुलिस की कार्यप्रणाली पर सवाल
इस घटना के बाद पुलिस की कार्यप्रणाली पर कई सवाल उठ रहे हैं। मनीष की गिरफ्तारी का उल्लेख शनिवार को दर्ज एफआईआर में नहीं था, जिससे संकेत मिलता है कि उसे अवैध हिरासत में रखा गया था। परिवार और मानवाधिकार संगठनों ने निम्नलिखित सवाल उठाए हैं:
- पुलिस हिरासत में मनीष के पास फांसी लगाने के लिए फंदा कैसे पहुंचा?
- थाने के सीसीटीवी कैमरे उस समय चालू थे या नहीं?
- मनीष की हिरासत की सूचना परिजनों को समय पर क्यों नहीं दी गई?
परिजनों और समाज का आक्रोश
मनीष पांडे की मौत के बाद उनके परिजनों और ब्राह्मण समाज के लोग धरने पर बैठ गए। उन्होंने मनीष की पत्नी के लिए नौकरी और बच्चों के पालन-पोषण की मांग की है। पूर्व मंत्री प्रताप सिंह खाचरियावास ने भी इस मामले में सक्रियता दिखाई और एसएमएस मोर्चरी पहुंचकर परिजनों से मुलाकात की।
पोस्टमार्टम और जांच
मनीष के शव का पोस्टमार्टम उनके परिजनों के जयपुर पहुंचने के बाद किया जाएगा। पुलिस ने मामले की गंभीरता को देखते हुए त्वरित कार्रवाई की, लेकिन सीसीटीवी फुटेज और हिरासत की प्रक्रिया को लेकर पारदर्शिता की कमी ने विवाद को और बढ़ा दिया है। मानवाधिकार संगठनों ने इस मामले में निष्पक्ष जांच की मांग की है