जोधपुर के रतनाडा में अतिक्रमण हटाओ अभियान: स्थानीय लोगों का भारी नुकसान, नोटिस को लेकर विवाद
जोधपुर के रतनाडा में भाटी चौराहे के स्टेट गैरेज पर नगर निगम ने अतिक्रमण हटाने की कार्रवाई की, जिसमें कई दुकानें और मकान तोड़े गए। स्थानीय लोगों का दावा है कि उन्हें कोई नोटिस नहीं मिला, जबकि निगम का कहना है कि 15 दिन पहले नोटिस जारी किया गया था। इस कार्रवाई से लोगों को भारी नुकसान हुआ और प्रशासन के खिलाफ आक्रोश बढ़ा।

जोधपुर शहर के रतनाडा क्षेत्र में भाटी चौराहे के पास स्टेट गैरेज पर नगर निगम द्वारा अतिक्रमण हटाने की कार्रवाई ने स्थानीय निवासियों और दुकानदारों में आक्रोश पैदा कर दिया है। इस अभियान में कई दुकानों और मकानों को ध्वस्त किया गया, जिससे वहां रहने वाले लोगों को भारी आर्थिक और भावनात्मक नुकसान हुआ। स्थानीय लोगों का दावा है कि उन्हें इस कार्रवाई से पहले कोई नोटिस नहीं दिया गया, जबकि नगर निगम का कहना है कि 15 दिन पहले ही सभी प्रभावित पक्षों को नोटिस जारी कर सूचित किया गया था। इस घटना ने प्रशासन और स्थानीय समुदाय के बीच तनाव को जन्म दिया है।
घटना का ब्यौरा
रतनाडा के भाटी चौराहे के निकट स्टेट गैरेज क्षेत्र में लंबे समय से कई दुकानें और आवासीय संरचनाएं मौजूद थीं। ये संरचनाएं कई परिवारों के लिए आजीविका और आश्रय का मुख्य साधन थीं। बताया जाता है कि ये निर्माण सरकारी जमीन पर बने थे, जिन्हें नगर निगम ने अतिक्रमण मानकर हटाने का निर्णय लिया। बुलडोजर और भारी मशीनों की मदद से कई दुकानों और मकानों को तोड़ दिया गया। इस कार्रवाई से प्रभावित लोग अचानक बेघर हो गए, और दुकानदारों को अपनी आजीविका का नुकसान उठाना पड़ा।
स्थानीय लोगों का पक्ष
प्रभावित निवासियों और व्यापारियों का कहना है कि वे कई दशकों से इस क्षेत्र में रह रहे थे और उनके पास वैध दस्तावेज भी हैं। उनका आरोप है कि प्रशासन ने बिना किसी पूर्व सूचना या सुनवाई के उनके घर और दुकानें तोड़ दीं। कई लोगों ने बताया कि कार्रवाई इतनी अचानक थी कि उन्हें अपना सामान बचाने का मौका तक नहीं मिला। कुछ दुकानदारों ने कहा कि उनकी पूरी आजीविका इन दुकानों पर निर्भर थी, और अब वे आर्थिक संकट में हैं। स्थानीय लोगों ने प्रशासन पर मनमानी का आरोप लगाते हुए नोटिस न दिए जाने की बात दोहराई।
प्रशासन का दावा
नगर निगम के अधिकारियों ने इस कार्रवाई को नियमों के अनुरूप और उचित प्रक्रिया के तहत किया गया बताया। उनका कहना है कि स्टेट गैरेज की जमीन सरकारी संपत्ति है, और उस पर अवैध कब्जा किया गया था। अधिकारियों ने दावा किया कि अतिक्रमण हटाने से 15 दिन पहले नोटिस जारी किए गए थे, और सभी प्रभावित पक्षों को सूचित किया गया था। हालांकि, स्थानीय लोगों ने इन दावों को खारिज करते हुए कहा कि उन्हें कोई नोटिस नहीं मिला।
विवाद और सवाल
इस कार्रवाई ने कई सवाल खड़े किए हैं। पहला, क्या प्रशासन ने वाकई सभी प्रभावित लोगों को नोटिस दिया था? यदि हां, तो क्या नोटिस देने की प्रक्रिया पारदर्शी और प्रभावी थी? दूसरा, लंबे समय से रह रहे लोगों को बिना पुनर्वास के उचित विकल्प के बेघर करना कितना उचित है? इस घटना ने स्थानीय समुदाय में प्रशासन के प्रति अविश्वास को बढ़ाया है, और प्रभावित लोग न्याय और मुआवजे की मांग कर रहे हैं।
जोधपुर के रतनाडा में हुई इस अतिक्रमण हटाओ कार्रवाई ने एक बार फिर प्रशासनिक प्रक्रियाओं और स्थानीय लोगों के अधिकारों के बीच टकराव को उजागर किया है। यह घटना न केवल प्रभावित परिवारों के लिए, बल्कि पूरे शहर के लिए एक संवेदनशील मुद्दा बन गई है। प्रशासन को चाहिए कि वह भविष्य में ऐसी कार्रवाइयों से पहले पारदर्शी और मानवीय दृष्टिकोण अपनाए, ताकि आम लोगों का विश्वास बना रहे और अनावश्यक नुकसान से बचा जा सके।