जयपुर: पिस्टल पर 'मेड-इन-इटली' मार्किंग न होने से आरोपी को मिली बरी, कोर्ट ने पुलिस जांच पर उठाए सवाल
जयपुर की न्यायिक मजिस्ट्रेट कोर्ट ने 2014 के अवैध हथियार मामले में आरोपी उमेद सिंह को बरी कर दिया। कोर्ट ने पिस्टल पर ‘मेड-इन-इटली’ मार्किंग न होने और कोई स्वतंत्र गवाह न होने के कारण पुलिस की जांच को संदेहास्पद माना। जज हुमा कोहरी ने सबूतों की कमी पर कड़ी टिप्पणी की।
जयपुर, 18 नवंबर 2025: जयपुर जिले की न्यायिक मजिस्ट्रेट कोर्ट ने एक पुराने अवैध हथियार रखने के मामले में आरोपी को बरी कर दिया है। कोर्ट ने पुलिस की जांच प्रक्रिया को संदेहप्रद बताते हुए साफ कहा कि मामले में कोई ठोस सबूत नहीं हैं। खास बात यह है कि जब्त की गई पिस्टल पर 'मेड-इन-इटली' का मार्किंग न होने से ही हथियार को असली मानने में कोर्ट को संशय हुआ। जज हुमा कोहरी ने अपने विस्तृत आदेश में पुलिस की कार्यशैली पर कड़े सवाल खड़े किए और कहा कि बिना स्वतंत्र गवाहों के यह जांच पूरी तरह पक्षपाती लगती है।
घटना का पूरा विवरण: 2014 की पुरानी रात यह मामला 30 अक्टूबर 2014 का है, जब जयपुर के खातीपुरा पुलिया के नीचे एक रूटीन चेकिंग के दौरान पुलिस ने उमेद सिंह नामक व्यक्ति को हथियार के साथ गिरफ्तार किया था। पुलिस के अनुसार, उमेद सिंह के पास से एक पिस्टल बरामद हुई थी, जिसे अवैध हथियार का दर्जा दिया गया। गिरफ्तारी के समय पुलिस का दावा था कि उमेद सिंह संदिग्ध परिस्थितियों में पुलिया के नीचे खड़ा था और उसके पास रखा हथियार बिना किसी वैध लाइसेंस के था। पुलिस ने तुरंत मामला दर्ज किया और उमेद सिंह को हिरासत में ले लिया। चार्जशीट में पुलिस ने पिस्टल को 'देशी कट्टा' या अवैध हथियार के रूप में वर्णित किया, लेकिन कोर्ट में पेश किए गए सबूतों ने पूरी कहानी को उलट दिया। जब्त हथियार की जांच में पाया गया कि यह एक सामान्य पिस्टल थी, लेकिन उस पर न तो कोई लाइसेंस नंबर था और न ही 'मेड-इन-इटली' जैसा कोई अंतरराष्ट्रीय मार्किंग। पुलिस ने इसे अवैध बताने के लिए फोरेंसिक रिपोर्ट का हवाला दिया, लेकिन कोर्ट ने इसे अपर्याप्त माना।
कोर्ट की सुनवाई: सबूतों की कमी ने उजागर की पुलिस की लापरवाही मामला जयपुर जिले की न्यायिक मजिस्ट्रेट कोर्ट में पहुंचा, जहां जज हुमा कोहरी ने कई सुनवाइयों के बाद फैसला सुनाया। कोर्ट के आदेश में स्पष्ट रूप से कहा गया है कि "पुलिस जांच में कोई स्वतंत्र गवाह नहीं पेश किया गया। केवल पुलिसकर्मियों के बयान पर निर्भर रहना न्याय के सिद्धांतों के विरुद्ध है।" जज ने आगे टिप्पणी की कि हथियार पर 'मेड-इन-इटली' का मार्किंग न होने से यह साबित नहीं होता कि यह अवैध था। बल्कि, यह मार्किंग की अनुपस्थिति पुलिस की जांच की कमजोरी को दर्शाती है। कोर्ट ने पुलिस की चार्जशीट पर सवाल उठाते हुए कहा कि घटनास्थल पर कोई वीडियो फुटेज या अन्य तकनीकी सबूत क्यों नहीं जुटाए गए? इसके अलावा, उमेद सिंह के बचाव पक्ष ने तर्क दिया कि पिस्टल एक खिलौना या नकली हो सकती थी, जिसकी पुष्टि के लिए कोई उचित जांच नहीं हुई। बचाव पक्ष के वकील ने कोर्ट में दलील दी कि "पुलिस ने बिना ठोस प्रमाण के आरोपी को फंसाने की कोशिश की, जो लोकतांत्रिक व्यवस्था में अस्वीकार्य है।"
जज का फैसला: बरी होने के बाद भी सबक लंबी सुनवाई के बाद जज हुमा कोहरी ने उमेद सिंह को सभी आरोपों से बरी कर दिया। कोर्ट ने न केवल आरोपी को रिहा किया, बल्कि पुलिस विभाग को निर्देश दिया कि भविष्य में ऐसी जांचों में स्वतंत्र गवाहों को शामिल करना अनिवार्य हो। इस फैसले से जयपुर पुलिस पर सवाल खड़े हो गए हैं, क्योंकि यह पुराने मामलों में भी पुलिस की जांच की गुणवत्ता पर सवालिया निशान लगाता है। उमेद सिंह, जो 2014 से इस मामले में उलझा हुआ था, ने फैसले के बाद कहा, "मैं निर्दोष था और आखिरकार न्याय मिल गया। लेकिन इतने साल बर्बाद हो गए।" उनके परिवार ने इसे न्यायिक प्रक्रिया की जीत बताया।