दलित नाबालिग की जिंदगी तबाह: दो साल की हैवानियत, 17 दरिंदों की करतूत और सिस्टम की शर्मनाक चुप्पी
आंध्र प्रदेश में 13 साल की दलित नाबालिग के साथ दो साल तक 17 लोगों ने बलात्कार किया, जो अब 8 महीने की गर्भवती है। प्रशासन और स्कूल की लापरवाही ने मामले को और गंभीर बनाया, जिसमें जातिगत भेदभाव और सिस्टम की विफलता उजागर हुई। 17 आरोपियों पर पॉक्सो एक्ट समेत कई धाराओं में केस दर्ज किया गया है।

आंध्र प्रदेश के एक दक्षिणी जिले में एक नाबालिग दलित लड़की के साथ दो साल तक बलात्कार का दिल दहला देने वाला मामला सामने आया है। पुलिस के अनुसार, 17 लोगों ने 13 साल की उम्र से इस लड़की का यौन शोषण किया, जो अब 15 साल की है और आठ महीने की गर्भवती है। यह मामला न केवल एक जघन्य अपराध को दर्शाता है, बल्कि प्रशासनिक और सामाजिक व्यवस्था की घोर विफलता को भी उजागर करता है।
पुलिस रिपोर्ट के मुताबिक, पीड़िता के पिता की तीन साल पहले मृत्यु हो गई थी, और उसकी मां कर्नाटक सीमा के पास एक गांव में रहती थी। पीड़िता, जो उस समय आठवीं कक्षा में पढ़ रही थी, को एक आरोपी ने अपने क्लासमेट के साथ स्कूल के बाद अकेले देखा। उसने दोनों की तस्वीरें खींचकर उन्हें सोशल मीडिया पर लीक करने की धमकी दी और लड़की को यौन शोषण के लिए मजबूर किया। बाद में, इन घटनाओं के वीडियो और तस्वीरों का इस्तेमाल कर अन्य आरोपियों ने भी पीड़िता का शोषण किया। यह सिलसिला दो साल तक चला।
प्रशासन की लापरवाही
इंडियन एक्सप्रेस की रिपोर्ट के अनुसार, पीड़िता की कम उम्र, गरीबी, और दलित समुदाय से होने के कारण प्रभावशाली समुदाय के लोगों ने सिस्टम को नजरअंदाज कर उसका शोषण किया। पुलिस अधीक्षक वी. रत्ना ने बताया कि पीड़िता की सुरक्षा के लिए बने तमाम सिस्टम पूरी तरह नाकाम रहे। स्कूल की क्लास टीचर ने यह नहीं बताया कि पीड़िता ने स्कूल छोड़ दिया था। दसवीं कक्षा जैसे महत्वपूर्ण साल में उसकी अनुपस्थिति पर शिक्षकों ने कोई ध्यान नहीं दिया। इसके अलावा, महिला पुलिस वॉलिंटियर और आशा कार्यकर्ता ने भी पीड़िता और उसकी मां की स्थिति पर ध्यान नहीं दिया।
सामाजिक भेदभाव और दबाव
गांव में अनुसूचित जाति (एससी) समुदाय की आबादी बहुत कम है। 17 आरोपियों में से 14 बोया समुदाय से हैं, जबकि तीन ने इस अपराध की जानकारी छुपाई। मामले के उजागर होने पर बोया समुदाय के नेताओं ने कथित तौर पर पीड़िता की शादी उसके क्लासमेट से करवाकर मामले को दबाने की कोशिश की।
जून के पहले हफ्ते में पीड़िता की मां ने पुलिस से संपर्क किया। 9 जून को छह आरोपियों को गिरफ्तार किया गया, और बाद में 11 अन्य को हिरासत में लिया गया। कुल 17 आरोपी, जिनमें तीन नाबालिग और 18 से 51 साल की उम्र के 14 पुरुष शामिल हैं, पर भारतीय न्याय संहिता, पॉक्सो एक्ट, और आईटी अधिनियम के तहत मामला दर्ज किया गया है।
पीड़िता की स्थिति
डॉक्टरों ने पीड़िता की डिलीवरी की तारीख 21 जुलाई के बाद तय की है। पुलिस ने उसे घर भेजने के बजाय अस्पताल में रखने का फैसला किया है, क्योंकि आरोपियों के जेल में होने के बावजूद दबाव का खतरा बना हुआ है। एक पुलिस अधिकारी ने कहा, "दलित होने के कारण पीड़िता और उसकी मां कमजोर स्थिति में हैं। आरोपी किसी भी तरह से केस वापस लेने के लिए दबाव डाल सकते हैं।"
यह मामला न केवल एक नाबालिग के साथ हुए अत्याचार की कहानी है, बल्कि सामाजिक और प्रशासनिक व्यवस्था की विफलता को भी दर्शाता है। गरीबी, जातिगत भेदभाव, और सिस्टम की लापरवाही ने एक मासूम की जिंदगी को तबाह कर दिया। यह घटना समाज और सरकार के लिए गंभीर सवाल खड़ा करती है कि ऐसी जघन्य घटनाओं को रोकने के लिए क्या ठोस कदम उठाए जा रहे हैं?