ट्रंप का ताजा तमाशा: महिलाओं की उपलब्धियों को इतिहास से मिटाने की सनक!
डोनाल्ड ट्रंप के एक आदेश के तहत उनके प्रशासन ने महिलाओं की उपलब्धियों को सरकारी रिकॉर्ड्स से हटाने की मुहिम शुरू की है। नासा, पेंटागन और अर्लिंगटन नेशनल सिमेट्री से महिलाओं से जुड़ी जानकारियां हटाई गई हैं। ट्रंप ने डाइवर्सिटी, इक्विटी और इन्क्लूजन कार्यक्रमों को अवैध बताया। यह कदम जॉर्ज ऑरवेल के 1984 की तर्ज पर तथ्यों को मिटाने की कोशिश माना जा रहा है, जिससे महिलाओं के योगदान को नकारा जा रहा है।

अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप एक बार फिर अपने अटपटे फैसलों के चलते सुर्खियों में हैं। इस बार उनका निशाना हैं महिलाओं की उपलब्धियां, जिन्हें वे सरकारी रिकॉर्ड्स से पूरी तरह मिटाने की मुहिम में जुट गए हैं। 20 जनवरी 2025 को जारी एक कार्यकारी आदेश के तहत ट्रंप प्रशासन ने नासा, पेंटागन और यहां तक कि अर्लिंगटन नेशनल सिमेट्री जैसे प्रतिष्ठित संस्थानों से महिलाओं से जुड़ी ऐतिहासिक जानकारियां हटाने का अभियान शुरू कर दिया है। यह कदम न केवल विवादास्पद है, बल्कि जॉर्ज ऑरवेल के उपन्यास 1984 की उस डरावनी दुनिया की याद दिलाता है, जहां सत्ता असुविधाजनक सच्चाइयों को मिटा देती है।
क्या है ट्रंप का यह नया आदेश?
ट्रंप ने अपने आदेश में डाइवर्सिटी, इक्विटी और इन्क्लूजन (DEI) कार्यक्रमों को 'अवैध और अनैतिक' करार दिया। इसके तहत सबसे पहले नासा को अपनी वेबसाइट से महिलाओं की उपलब्धियों से जुड़ी सारी जानकारी हटाने का निर्देश दिया गया। पेंटागन ने भी इसका पालन करते हुए महिला सैनिकों की ऐतिहासिक उपलब्धियों को अपने ऑनलाइन प्लेटफॉर्म से गायब कर दिया। इतना ही नहीं, अर्लिंगटन नेशनल सिमेट्री, जो अमेरिका के शहीद सैनिकों की याद में बना एक पवित्र स्थल है, उसकी वेबसाइट से भी महिला वेटरन्स को समर्पित पेज हटा दिया गया। यह कदम महिलाओं के योगदान को न केवल नजरअंदाज करता है, बल्कि उनके इतिहास को ही मिटाने की कोशिश करता है।
ऑरवेलियन डायस्टोपिया की झलक
यह पूरा मसला जॉर्ज ऑरवेल के उपन्यास 1984 से सीधा प्रेरित लगता है। इस किताब में 'मिनिस्ट्री ऑफ ट्रुथ' नामक संस्था तथ्यों को तोड़-मरोड़ कर सरकार की विचारधारा के अनुरूप ढाल देती है। ठीक उसी तरह, ट्रंप का यह कदम उन तथ्यों को मिटाने की कोशिश है जो उनकी नीतियों या सोच को चुनौती दे सकते हैं। लेखिका अन्ना फंडर अपनी किताब वाइफडम: मिसेज ऑरवेल्स इनविजिबल लाइफ में बताती हैं कि ऑरवेल की पत्नी आइलीन ओ'शोनेसी ने उनके लेखन और विचारों को आकार देने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी, लेकिन इतिहास ने उन्हें वह सम्मान नहीं दिया जिसकी वे हकदार थीं। अन्ना का कहना है कि महिलाओं को हमेशा से हाशिए पर धकेला गया है, और ट्रंप का यह फैसला उसी पुरानी मानसिकता का नया रूप है।
महिलाओं का साइडलाइन होना नई बात नहीं
अन्ना फंडर के अनुसार, महिलाओं को इतिहास से मिटाने की कहानी नई नहीं है। पुरुषों की असुरक्षा का खामियाजा महिलाओं को हमेशा भुगतना पड़ा है। ट्रंप का यह कदम उसी सोच को और मजबूत करता है, जहां महिलाओं के योगदान को नजरअंदाज कर उनकी उपलब्धियों को रिकॉर्ड से हटाया जा रहा है। यह न केवल महिलाओं के प्रति अन्याय है, बल्कि समाज के एक बड़े हिस्से की प्रगति को नकारने जैसा है।
विवादों के बादशाह ट्रंप
ट्रंप का यह फैसला उनके पिछले कारनामों की तरह ही विवादों को जन्म दे रहा है। चाहे सरकारी खर्चों में कटौती के लिए अजीबोगरीब नियम हों या टैरिफ लगाकर वैश्विक बाजार को हिलाने की कोशिश, ट्रंप हमेशा चर्चा में रहते हैं। लेकिन इस बार का फैसला सिर्फ नीतिगत नहीं, बल्कि सामाजिक और सांस्कृतिक स्तर पर भी गहरे सवाल खड़े करता है। क्या इतिहास को मिटाकर कोई देश अपनी प्रगति का दावा कर सकता है? क्या महिलाओं की उपलब्धियों को नकारना किसी समाज को आगे ले जा सकता है?
अमेरिकी और भारतीय मीडिया में इस मुद्दे पर तीखी बहस छिड़ी हुई है। कई लोग इसे महिलाओं के अधिकारों पर हमला मान रहे हैं, तो कुछ इसे ट्रंप की 'अमेरिका फर्स्ट' नीति का हिस्सा बता रहे हैं। लेकिन सवाल यह है कि क्या यह कदम वाकई अमेरिका को 'महान' बनाएगा, या इसे और पीछे धकेल देगा? ट्रंप की इस नीति का वैश्विक असर भी देखने को मिल सकता है, खासकर उन देशों में जहां महिलाओं के अधिकारों की लड़ाई अभी भी जारी है।