जोधपुर हवाई अड्डे का नामकरण: मेघवाल समाज ने राजा राम मेघवाल के नाम की मांग को लेकर जिला कलेक्टर को सौंपा ज्ञापन
जोधपुर के नए हवाई अड्डे के नामकरण को लेकर विवाद गहरा गया है। मेघवाल समाज ने 9 जून 2025 को जिला कलेक्टर को ज्ञापन सौंपकर मांग की कि हवाई अड्डे का नाम राजा राम मेघवाल, जिन्होंने 1459 में मेहरानगढ़ किले की नींव में बलिदान दिया, के नाम पर रखा जाए। अन्य समुदाय महाराजा उम्मेद सिंह और अमृता देवी बिश्नोई के नामों की वकालत कर रहे हैं। यह मुद्दा सामाजिक और ऐतिहासिक भावनाओं को उजागर कर रहा है, और प्रशासन ने अभी कोई अंतिम फैसला नहीं लिया है।

जोधपुर में बन रहे नए हवाई अड्डे के नामकरण को लेकर चल रही बहस ने एक नया मोड़ ले लिया है। मेघवाल समाज ने आज, 9 जून 2025 को, जोधपुर जिला कलेक्टर परिसर में जिला कलेक्टर को एक ज्ञापन सौंपकर मांग की है कि हवाई अड्डे का नाम अमर शहीद राजा राम मेघवाल के नाम पर रखा जाए। राजा राम मेघवाल ने 15 मई 1459 को जोधपुर के ऐतिहासिक मेहरानगढ़ किले की नींव में अपने प्राणों का बलिदान दिया था। इस घटना ने मेघवाल समाज की सामाजिक और ऐतिहासिक मांग को और प्रबल कर दिया है, जिसमें वे अपने नायक के बलिदान को सम्मानित करने की मांग कर रहे हैं।
विवाद की पृष्ठभूमि
जोधपुर का नया हवाई अड्डा शहर के विकास और पर्यटन को बढ़ावा देने के लिए एक महत्वपूर्ण परियोजना है। इसके नामकरण को लेकर विभिन्न समुदायों के बीच लंबे समय से बहस चल रही है। तीन प्रमुख नाम इस चर्चा में उभरकर सामने आए हैं:
महाराजा उम्मेद सिंह: जोधपुर के पूर्व शासक, जिन्होंने 1924 में शहर में पहली हवाई पट्टी बनवाई थी। उनके समर्थक, विशेष रूप से राठौड़ समाज, उनके ऐतिहासिक योगदान के आधार पर हवाई अड्डे का नाम उनके नाम पर रखने की मांग कर रहे हैं।
अमृता देवी बिश्नोई: 18वीं सदी में पर्यावरण संरक्षण के लिए अपने प्राणों का बलिदान देने वाली बिश्नोई समाज की शहीद। बिश्नोई समुदाय का तर्क है कि उनका नाम पर्यावरण संरक्षण और सामाजिक समावेशिता का प्रतीक होगा।
राजा राम मेघवाल: मेघवाल समाज के एक साधारण व्यक्ति, जिन्हें मेहरानगढ़ किले की नींव में जीवित बलिदान दिया गया था। मेघवाल समाज इसे सामाजिक न्याय और उनके समुदाय के ऐतिहासिक बलिदान के सम्मान के रूप में देखता है।
मेघवाल समाज का ज्ञापन और मांग
आज जोधपुर जिला कलेक्टर परिसर में मेघवाल समाज के सैकड़ों सदस्यों ने एकत्र होकर जिला कलेक्टर को एक ज्ञापन सौंपा। ज्ञापन में मांग की गई कि नए हवाई अड्डे का नाम राजा राम मेघवाल के नाम पर रखा जाए। समाज के नेताओं ने तर्क दिया कि राजा राम मेघवाल का बलिदान जोधपुर के इतिहास का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है, जिसे लंबे समय तक दबाया गया। उन्होंने कहा कि 1459 में मेहरानगढ़ किले की नींव के लिए राजा राम मेघवाल (जिन्हें राजिया भाम्बी भी कहा जाता है) ने स्वेच्छा से अपने प्राणों का बलिदान दिया था, ताकि किला अजेय और समृद्ध बना रहे।
मेघवाल समाज के प्रवक्ता ने कहा, “राजा राम मेघवाल का बलिदान सामाजिक न्याय और समानता की मिसाल है। उनका नाम हवाई अड्डे के लिए चुनना न केवल उनके त्याग को सम्मान देगा, बल्कि यह भी दिखाएगा कि जोधपुर सभी समुदायों के योगदान को महत्व देता है।” समाज ने यह भी आरोप लगाया कि ऐतिहासिक रूप से उनके समुदाय के योगदान को नजरअंदाज किया गया है, और यह नामकरण उनके गौरव को पुनर्जनन देगा।
राजा राम मेघवाल का बलिदान
राजा राम मेघवाल की कहानी जोधपुर के इतिहास में गहरे दर्द और गौरव का प्रतीक है। 1459 में, जब राव जोधा ने मेहरानगढ़ किले का निर्माण शुरू किया, तो ज्योतिषी गणपत दत्त ने किले की अजेयता और समृद्धि के लिए नरबलि की सलाह दी। राव जोधा ने इसके लिए स्वेच्छा से बलिदान देने वाले व्यक्ति की तलाश की। उस समय के सामाजिक ढांचे में कोई भी उच्च वर्ग का व्यक्ति इसके लिए तैयार नहीं हुआ। अंततः, राजा राम मेघवाल, जो मेघवाल समुदाय के कड़ेला गोत्र से थे, ने स्वयं को इस बलिदान के लिए प्रस्तुत किया। 12 मई 1459 को उन्हें किले की नींव में जीवित चुना गया।
इस बलिदान के बदले, राव जोधा ने राजा राम के वंशजों को सूरसागर में कुछ भूमि दी, जो आज भी 'राज बाग' के नाम से जानी जाती है। इसके अलावा, मेघवाल समुदाय को होली के अवसर पर किले में गेर नृत्य करने का विशेष अधिकार दिया गया। हालांकि, मेघवाल समाज का कहना है कि यह सम्मान उनके बलिदान के सामने नगण्य है।
महाराजा उम्मेद सिंह के समर्थकों का कहना है कि उनके द्वारा स्थापित हवाई पट्टियों और जोधपुर फ्लाइंग क्लब ने शहर को आधुनिक विमानन का केंद्र बनाया। मारवाड़ जागरण मंच के अध्यक्ष डॉ. गजेंद्र सिंह राठौड़ ने कहा, “महाराजा उम्मेद सिंह ने 1936 में अंतरराष्ट्रीय उड़ानों की शुरुआत की थी। उनका नाम हवाई अड्डे के लिए सबसे उपयुक्त है।”
वहीं, बिश्नोई समुदाय ने अमृता देवी बिश्नोई के नाम की वकालत करते हुए कहा कि उनका बलिदान पर्यावरण संरक्षण का वैश्विक प्रतीक है।जैसे उपयोगकर्ताओं ने सुझाव दिया कि मेहरानगढ़ किले का नाम राजा राम मेघवाल के नाम पर हो, जबकि हवाई अड्डे का नाम अमृता देवी के नाम पर रखा जाए।
सोशल मीडिया पर यह मुद्दा गर्म है।
“जोधपुर एयरपोर्ट का नाम श्री राजा राम मेघवाल के नाम पर कर उनके इतिहास को पुनर्जनन किया जाए।” , “मेहरानगढ़ किले की नींव में राजा राम मेघवाल को जिंदा दफनाया गया, फिर भी जोधपुर के इतिहास में उन्हें क्यों भुलाया गया?” ये पोस्टर मेघवाल समाज की भावनाओं को दर्शाते हैं, जो अपने नायक के बलिदान को सामने लाने के लिए आंदोलन को तेज करने की बात कर रहे हैं।
सरकार और प्रशासन की स्थिति
जोधपुर के नए हवाई अड्डे का निर्माण तेजी से चल रहा है, और इसका नया टर्मिनल प्रति वर्ष 35 लाख यात्रियों को सेवा देने में सक्षम होगा। हालांकि, नामकरण को लेकर अभी कोई अंतिम फैसला नहीं हुआ है। जिला प्रशासन ने मेघवाल समाज के ज्ञापन को स्वीकार कर इसे उच्च अधिकारियों तक पहुंचाने का आश्वासन दिया है। सूत्रों के अनुसार, यह मामला अब राज्य सरकार और केंद्रीय नागरिक उड्डयन मंत्रालय के पास विचाराधीन है।
जोधपुर हवाई अड्डे का नामकरण विवाद सामाजिक, ऐतिहासिक और भावनात्मक रूप से संवेदनशील है। मेघवाल समाज की मांग है कि राजा राम मेघवाल के बलिदान को सम्मानित किया जाए, जो सामाजिक न्याय और समानता का प्रतीक है। दूसरी ओर, महाराजा उम्मेद सिंह और अमृता देवी बिश्नोई के नाम भी जोधपुर के गौरवशाली इतिहास का हिस्सा हैं। यह देखना बाकी है कि सरकार इस जटिल मुद्दे पर क्या फैसला लेती है और कैसे सभी समुदायों की भावनाओं का सम्मान किया जाता है।