भुसावर के बारौली गांव: रास्ते में भरा कीचड़ और जलभराव से ग्रामीणों की परेशानी बढ़ी, प्रशासन से तत्काल समाधान की मांग
भरतपुर जिले के बारौली गांव में बारिश के बाद सड़कों पर कीचड़ और जलभराव ने ग्रामीणों की रोजमर्रा की जिंदगी मुश्किल बना दी है। खेतों, स्कूल और बाजार तक पहुंचना कठिन हो गया है। ग्रामीणों ने प्रशासन पर लापरवाही का आरोप लगाते हुए 15 दिनों में समाधान नहीं होने पर बड़े आंदोलन की चेतावनी दी है। एसडीएम और विकास अधिकारी ने कार्रवाई का आश्वासन दिया है, लेकिन ग्रामीण पिछले अनुभवों के कारण आश्वस्त नहीं हैं। समस्या के समाधान के लिए तत्काल कदम जरूरी हैं
भरतपुर, 16 नवंबर 2025: राजस्थान के भरतपुर जिले के भुसावर उपखंड में स्थित बारौली गांव के निवासियों को इन दिनों रास्तों पर फैले कीचड़ और जलभराव की समस्या ने खासी परेशानी में डाल दिया है। बारिश के बाद गांव के प्रमुख मार्गों पर पानी भरने और कीचड़ जमा होने से ग्रामीणों का दैनिक जीवन बुरी तरह प्रभावित हो रहा है। खेतों तक पहुंचना, बाजार जाना और अन्य आवश्यक कार्यों के लिए निकलना मुश्किल हो गया है। आक्रोशित ग्रामीणों ने स्थानीय प्रशासन पर लापरवाही का आरोप लगाते हुए तत्काल समाधान की मांग की है। इस मुद्दे ने गांव में व्यापक असंतोष पैदा कर दिया है, और यदि शीघ्र कार्रवाई न हुई तो बड़े आंदोलन की चेतावनी भी दी गई है।
समस्या का विस्तार: कीचड़ और जलभराव का कहर बारौली गांव, जो भुसावर उपखंड का एक प्रमुख ग्रामीण क्षेत्र है, यहां की सड़कें वर्षा ऋतु के बाद हमेशा की तरह कीचड़ की चपेट में आ गई हैं। विशेष रूप से गांव के मुख्य रास्ते, जो खेतों, बाजार और आसपास के कस्बों को जोड़ते हैं, पर पानी का ठहराव और मिट्टी का चिपचिपा कीचड़ जमा हो गया है। ग्रामीणों के अनुसार, यह समस्या पिछले कई वर्षों से बनी हुई है, लेकिन इस बार मानसून की अधिक वर्षा के कारण स्थिति और गंभीर हो गई है। गांव के बुजुर्ग किसान ने बताया, "हमारे खेतों तक पहुंचने के लिए रास्ता ही नहीं बच गया। बैलगाड़ी या ट्रैक्टर ले जाना तो दूर, पैदल चलना भी जोखिम भरा हो गया है। बच्चे स्कूल जाने में असमर्थ हैं, और महिलाओं को घरेलू सामान लाने में भारी कठिनाई हो रही है।" इसी तरह, एक अन्य ग्रामीण, सरिता देवी ने शिकायत की कि जलभराव के कारण मच्छरों और बीमारियों का खतरा बढ़ गया है। गांव में डेंगू और मलेरिया जैसे रोगों के मामले भी सामने आने लगे हैं, जो स्वास्थ्य सेवाओं पर अतिरिक्त बोझ डाल रहे हैं। सड़कों की खराब स्थिति का मुख्य कारण ग्रामीणों के मुताबिक ड्रेनेज सिस्टम की कमी और समय पर रखरखाव न होना है। नालियां अवरुद्ध हैं, और वर्षा का पानी सीधे सड़कों पर बहकर कीचड़ का रूप ले लेता है। यह समस्या न केवल यातायात को बाधित कर रही है, बल्कि आर्थिक नुकसान भी पहुंचा रही है। किसानों को अपनी उपज समय पर बाजार तक पहुंचाने में देरी हो रही है, जिससे उनकी आय प्रभावित हो रही है।
ग्रामीणों का आक्रोश: प्रशासन पर गंभीर आरोप बारौली गांव के सैकड़ों ग्रामीणों ने इस समस्या के समाधान के लिए एकत्र होकर स्थानीय प्रशासन के खिलाफ रोष व्यक्त किया। गांव की पंचायत भवन के बाहर आयोजित एक सभा में ग्रामीणों ने उपखंड अधिकारी (एसडीएम) राधेश्याम मीणा और विकास अधिकारी जेपी बुनकर को ज्ञापन सौंपा। ज्ञापन में साफ लिखा था कि यदि 15 दिनों के अंदर सड़कों की मरम्मत, ड्रेनेज सिस्टम को साफ करने और कीचड़ हटाने का कार्य शुरू न हुआ, तो वे जिला मुख्यालय तक पदयात्रा करेंगे। ग्रामीण नेता ने कहा, "हमने कई बार शिकायत दर्ज कराई, लेकिन कोई कार्रवाई नहीं हुई। विकास के नाम पर गांव को भुला दिया गया है। एसडीएम साहब और विकास अधिकारी को हमारी परेशानी का अहसास नहीं हो रहा।" सभा में महिलाओं और युवाओं की संख्या भी उल्लेखनीय थी, जो अपनी-अपनी समस्याओं को साझा कर रही थीं। एक युवा ग्रामीण ने तो यहां तक कह दिया कि "यह कीचड़ नहीं, प्रशासन की लापरवाही का प्रतीक है।"
प्रशासन की प्रतिक्रिया: आश्वासन या वादा? ज्ञापन प्राप्त करने के बाद उपखंड अधिकारी राधेश्याम मीणा ने ग्रामीणों को आश्वस्त करने की कोशिश की। उन्होंने कहा, "समस्या गंभीर है, और हम इसे समझते हैं। जल्द ही एक टीम भेजकर सर्वे कराया जाएगा, और आवश्यक फंड आवंटित कर सड़कों की मरम्मत कराई जाएगी। ड्रेनेज कार्य के लिए भी प्रस्ताव तैयार है।" वहीं, विकास अधिकारी जेपी बुनकर ने बताया कि ग्रामीण विकास विभाग के तहत कुछ योजनाएं चल रही हैं, जिनमें सड़क निर्माण शामिल है। हालांकि, ग्रामीणों को ये आश्वासन खोखले लग रहे हैं, क्योंकि पिछले वर्ष भी इसी तरह के वादे किए गए थे, लेकिन कोई ठोस परिणाम नहीं निकला।जिला प्रशासन के एक वरिष्ठ अधिकारी ने बताया कि भरतपुर जिले में कई ग्रामीण क्षेत्रों में इसी तरह की समस्याएं हैं, और राज्य सरकार की 'मुख्यमंत्री ग्रामीण सड़क योजना' के तहत इनका समाधान किया जा रहा है। लेकिन बारौली जैसे गांवों को प्राथमिकता में लाने की मांग तेज हो गई है।
बारौली गांव की यह समस्या न केवल स्थानीय मुद्दा है, बल्कि पूरे ग्रामीण राजस्थान की बदहाली को दर्शाती है। ग्रामीणों की मांग जायज है, और प्रशासन को इसे गंभीरता से लेना चाहिए। यदि समय रहते समाधान न हुआ, तो यह छोटी चिंगारी बड़े आंदोलन का रूप ले सकती है। उम्मीद है कि एसडीएम राधेश्याम मीणा और विकास अधिकारी जेपी बुनकर की टीम शीघ्र कार्य शुरू कर ग्रामीणों को राहत पहुंचाएगी। फिलहाल, गांववासी धैर्य बनाए रखने का आह्वान कर रहे हैं, लेकिन उनकी नजरें प्रशासन की कार्रवाई पर टिकी हैं।