हनुमान बेनीवाल के बेटे आशुतोष का 'सभागार' में जोशीला भाषण.

हनुमान बेनीवाल के 10 वर्षीय बेटे आशुतोष ने नागौर में आरएलपी की सभा में मंच पर जोरदार भाषण दिया। उन्होंने कहा, "अगर चुनाव लड़ने की उम्र 8-10 साल होती, तो मैं भी विधायक बन जाता!" यह व्यंग्यात्मक टिप्पणी सोशल मीडिया पर वायरल हो गई। आशुतोष ने पिता की तरह किसान मुद्दों, ग्रेवल माफिया और भ्रष्टाचार पर बोला, जिससे सभा में ठहाके गूंजे। हनुमान बेनीवाल ने इसे 'जज्बे की जीत' बताया। यह घटना आरएलपी की युवा छवि और जाट-किसान वोटबैंक को मजबूत करने की रणनीति का हिस्सा है।

Oct 29, 2025 - 21:11
हनुमान बेनीवाल के बेटे आशुतोष का 'सभागार' में जोशीला भाषण.

राजस्थान की राजनीति में किसान नेता और राष्ट्रीय लोकतांत्रिक पार्टी (आरएलपी) के संस्थापक हनुमान बेनीवाल के छोटे बेटे आशुतोष बेनीवाल ने हाल ही में एक दिलचस्प और हास्यपूर्ण अंदाज में राजनीतिक मंच पर अपनी उपस्थिति दर्ज की। मात्र 10 वर्ष की उम्र में आशुतोष ने एक सभागार में अपने पिता की तर्ज पर जोरदार भाषण दिया, जिसमें उन्होंने चुनाव लड़ने की न्यूनतम आयु सीमा पर व्यंग्यात्मक टिप्पणी की। उनका यह बयान सोशल मीडिया पर वायरल हो गया और लोगों ने इसे 'नन्हा नेता' का मजाकिया लेकिन गंभीर संदेश मानते हुए सराहा। 

आशुतोष का राजनीतिक परिवेश

हनुमान बेनीवाल राजस्थान के नागौर जिले से सांसद हैं और आरएलपी के प्रमुख नेता के रूप में किसानों, जाट समुदाय और ग्रामीण मुद्दों पर मुखर रहते हैं। वे 2008 से खींवसर विधानसभा क्षेत्र से चार बार विधायक रह चुके हैं और 2019 व 2024 के लोकसभा चुनावों में नागौर से जीत हासिल की। उनकी पत्नी कनिका बेनीवाल हाल ही में खींवसर उपचुनाव में आरएलपी की उम्मीदवार थीं, लेकिन भाजपा के रेवंत राम डांगा से हार गईं। परिवार में राजनीति का गहरा प्रभाव है—हनुमान के भाई नारायण बेनीवाल भी पूर्व विधायक हैं।ऐसे में आशुतोष, जो बेनीवाल परिवार के सबसे छोटे सदस्य हैं, बचपन से ही राजनीतिक सभाओं और रैलियों में नजर आते रहे हैं। मार्च 2025 में उनके 10वें जन्मदिन पर दिल्ली में आयोजित समारोह में केंद्रीय मंत्री नितिन गडकरी ने हंसते हुए कहा था, "कुछ भी बनो, लेकिन नेता मत बनना।" यह टिप्पणी आशुतोष की लोकप्रियता को दर्शाती है। जुलाई 2025 में नागौर में आयोजित जन आक्रोश रैली में भी आशुतोष अपनी बहन दिया के साथ मंच पर दिखे, जहां पिता ने ग्रेवल माफिया और फसल बीमा देरी जैसे मुद्दों पर हमला बोला। लेकिन आशुतोष का हालिया भाषण इनसे अलग, अधिक व्यक्तिगत और व्यंग्यपूर्ण था। 

सभा में क्या बोला आशुतोष? विस्तार से

पिछले हफ्ते नागौर में आरएलपी की एक जिला स्तरीय सभा के दौरान आशुतोष को मंच पर बुलाया गया। पिता हनुमान बेनीवाल ने उन्हें 'भविष्य का नेता' बताते हुए बोलने का मौका दिया। आशुतोष ने माइक संभाला और भीड़ के सामने कहा, "अगर चुनाव लड़ने की उम्र 8-10 साल होती, तो मैं भी विधायक बन जाता!" यह बयान सभा में ठहाकों की बौछार लेकर आ गया। उन्होंने आगे जोड़ा कि वे पापा की तरह किसानों के लिए लड़ेंगे, लेकिन अभी स्कूल और खेल पर फोकस है।यह टिप्पणी केवल मजाक नहीं थी, बल्कि यह वर्तमान राजनीतिक बहस को छूती है। भारत में लोकसभा या विधानसभा चुनाव लड़ने की न्यूनतम आयु 25 वर्ष है जबकि वोट डालने की 18 वर्ष। आशुतोष का यह कथन युवा भागीदारी की मांग को प्रतिबिंबित करता है—जैसे कि तेलंगाना के सीएम रेवंत रेड्डी ने हाल ही में 25 से घटाकर 21 वर्ष करने की वकालत की, या आप सांसद राघव चड्ढा ने राज्यसभा में 21 वर्ष की सिफारिश की। आशुतोष ने अनजाने में इस बहस को हल्के-फुल्के अंदाज में जोड़ दिया, जो सोशल मीडिया पर मीम्स और वीडियो के रूप में फैल गया। लोगों ने कमेंट्स में लिखा, "नन्हा बेनीवाल बड़ा धमाल मचाएगा!" या "युवा राजनीति का असली चेहरा।"आशुतोष ने भाषण में पिता के मुद्दों का भी जिक्र किया—किसानों की कर्जमाफी, ग्रेवल माफिया पर कार्रवाई, और भाजपा सरकार पर भ्रष्टाचार के आरोप। उन्होंने कहा, "मैं बड़ा होकर पापा की तरह चोरों को जूतों से पीटूंगा!" भाषण करीब 2-3 मिनट का था, लेकिन इसने सभा को उत्साह से भर दिया। हनुमान बेनीवाल ने बाद में कहा, "मेरा बेटा अभी छोटा है, लेकिन दिल बड़ा है। राजनीति में उम्र नहीं, जज्बा मायने रखता है।" 

राजनीतिक संदर्भ और प्रभाव

यह घटना आरएलपी की रणनीति को दर्शाती है, जहां परिवार को राजनीतिक ब्रांड के रूप में पेश किया जाता है। 2023 विधानसभा चुनावों में आरएलपी ने तीन सीटें जीतीं (मेर्ता, खींवसर, भोपालगढ़), लेकिन 2024 लोकसभा में केवल नागौर से जीत मिली। हनुमान बेनीवाल ने एनडीए से अलग होकर इंडिया गठबंधन का समर्थन किया, जिससे राजस्थान में कांग्रेस को फायदा हुआ। आशुतोष का भाषण इसी कड़ी का हिस्सा लगता है—युवाओं को जोड़ना और पार्टी को तरोताजा छवि देना।विपक्षी दलों ने इसे सराहा, लेकिन भाजपा समर्थकों ने 'राजनीतिक वारिस' बनाने का ताना कसा। विशेषज्ञों का मानना है कि यह घटना 2028 विधानसभा चुनावों से पहले आरएलपी की जाट-किसान वोटबैंक को मजबूत करने का प्रयास है। आशुतोष की उम्र को देखते हुए, वे अभी चुनावी दौड़ से कोसों दूर हैं, लेकिन उनका यह 'तंज' युवा नेतृत्व की बहस को हवा दे सकता है।